चाह मिटाओ, कर्तव्य निभाओ और आनंद पाओ : मनीष सागरजी महाराज

चाह मिटाओ, कर्तव्य निभाओ और आनंद पाओ : मनीष सागरजी महाराज

इच्छा ही दुख का कारण है

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में रविवार को विशेष प्रचवनमाला में परम पूज्य उपाध्याय भगवंत युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज साहब ने कहा कि जो अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करना सीखेगा, वह उतना अधिक सुखी रहेगा। ऐसा करके व्यक्ति सिर्फ भीतर से सुखी नहीं बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व में भी सुखी रहेगा। हमेशा व्यक्ति अपनी इच्छाओं से ही दुखी होता है। इच्छा ही दुख का कारण है। चाह  मिटाओ, कर्तव्य निभाओ और आनंद पाओ के सिद्धांत का जीवन में अनुसरण करें।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि चाह मिटाना पड़े तो मिटा दो।  कर्तव्य निभाना पड़े तो निभा लो और आनंद पाओ। ये सिद्धांत जीवन में आनंद भर देगा। सुखी रहना है और आनंद में रहना है तो सबसे पहले जीवन में चाहत छोड़ना पड़ेगा। बगैर चाहत के अपना कर्तव्य भी निभाना पड़ेगा। ऐसा करने से ही जीवन में आनंद ही आनंद होगा। जीवन में आनंद के साथ कोई समझौता नहीं करना है।


उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन ऐसा हो, जिसमें आप किसी को दुखी करने में निमित्त नहीं बनो। ईगो और स्वार्थ को लाकर किसी के मान-सम्मान को ठेस नहीं पहुंचे। परिवार को कभी भी बिखरने नहीं देना है। परिवार को स्वर्ग जैसा बनाना है। परिवार स्वर्ग बनेगा तो धर्म में रुचि होगी। धर्म में रुचि होगी तो देव, गुरु और धर्म से और अधिक जुड़ाव होगा। फिर इस गति में तो क्या किसी भी गति में हमारे जमीर को कोई गिरा नहीं पाएगा। सिद्धांतों वाले व्यक्तित्व का निर्माण होगा।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि कर्मयोगी बनो। कर्म करते जाओ, लेकिन फल की इच्छा मत करो। राग और स्वार्थ को छोड़कर अपना व्यक्तित्व बनाओ।  परिवार में लेना काम और देना अधिक की भावना रखो। आपको अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। परवाह नहीं करना कि कौन कैसा है। वह व्यक्ति कमजोर होता है, जो सहने के बाद कह देता है। वह थोड़ा मजबूत होता है जो सहता है, लेकिन कहता नहीं। वह सबसे मजबूत होता है, जो बातों को अंदर प्रवेश ही नहीं करने देता।

उपाध्याय भगवंत ने  कहा कि परिवार में दो तरह का जीवन जी सकते हैं। पहले भोगी बनकर और दूसरा योगी बनकर। जो व्यक्ति परिवार को देकर उसके बदले कुछ चाह रखता है तो वह भोगी का जीवन जीता है। संकल्प लें कि हमारा व्यक्तित्व परिवार व समाज में रहकर योगी बनकर जीने का प्रयास करें। जो देना जानता है लेकिन लेना नहीं जानता। मिले तो ठीक नहीं मिले तो ठीक सामने वालों का भला हो ऐसी चाहत होनी चाहिए।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि सबसे पहले हम अपने व्यक्तित्व का निर्माण करें। सबसे पहले हमें अपने व्यक्तित्व में जीना सीखना होगा। हमें अपने व्यक्तित्व को परिवार के लायक बनाना होगा। अपने सिद्धांतों व कौशल के बल पर सही ढंग से हर देश,काल व स्थिति में जीना सीखना होगा।  स्कूल और कॉलेज की शिक्षा भी बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लिए दी जाती है। स्वयं को तैयार करना लक्ष्य होना चाहिए।

5 दिवसीय भेद विज्ञान शिविर का होगा आयोजन

चातुर्मास समिति के अध्यक्ष श्यामसुंदर बैदमुथा ने बताया कि पांच दिवसीय आध्यात्मिक भेद विज्ञान शिविर का आयोजन टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में किया जाएगा। शिविर उपाध्याय भगवंत की पावन निश्रा में 14 सितंबर से 18 सितंबर तक आयोजित होगा। पंजीयन की अंतिम तिथि 6 सितंबर है। सभी से स्वतंत्र पंजीयन करने का निवेदन किया गया है। श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाज व चातुर्मास समिति के द्वारा  शिविर का आयोजन किया जा रहा है। भेद विज्ञान साधना में अपने आप को पर से हटकर स्व की ओर लाने की है। स्वयं की अनुमति स्वयं के द्वारा करने का प्रयास करना है। शिविर तीन चरणों में आयोजित होगा। पहला चरण सुबह 6 से 7 बजे तक, दूसरा चरण सुबह 9 से 11 बजे तक व तीसरा चरण दोपहर 2:30 बजे से 4:30 बजे तक होगा।