तलाक की कार्यवाही में पति को ‘नपुंसक’ कहना मानहानि नहीं: हाईकोर्ट का अहम फैसला

तलाक की कार्यवाही में पति को ‘नपुंसक’ कहना मानहानि नहीं: हाईकोर्ट का अहम फैसला

नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई पत्नी तलाक या गुज़ारा भत्ता (maintenance) के मुकदमे के दौरान अपने पति को “नपुंसक” कहती है, तो इसे आपराधिक मानहानि (defamation) नहीं माना जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे आरोप यदि न्यायिक प्रक्रिया के हिस्से के रूप में लगाए गए हों और उन्हें साबित करने के लिए सबूत पेश किए गए हों, तो वे अपराध की श्रेणी में नहीं आते। यह फैसला उस मामले में आया जहां एक पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया था, जिसमें पत्नी ने अपने बयान में पति को नपुंसक बताया था। कोर्ट ने कहा कि यदि यह बात केवल तलाक या गुज़ारा भत्ता की सुनवाई के दौरान कही गई है, तो इसे अपमानजनक बयान नहीं माना जा सकता।

हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि ऐसे आरोप सार्वजनिक रूप से या अपमानजनक तरीके से लगाए जाएं, जैसे रिश्तेदारों या समाज के सामने बिना प्रमाण के तो यह मानसिक क्रूरता (mental cruelty) माना जा सकता है और तलाक का आधार बन सकता है। इससे पहले भी दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट ऐसे मामलों में कह चुके हैं कि पति की मर्दानगी पर बिना सबूत सवाल उठाना विवाह में मानसिक यातना और क्रूरता का प्रमाण हो सकता है। लेकिन इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का कहना था कि जब आरोप कानूनन और न्यायिक प्रक्रिया के तहत लगाए जाएं, तो वे मानहानि की श्रेणी में नहीं आते।