गांधी को किसने मारा काव्य संग्रह का शील साहित्य परिषद में हुआ विमोचन

जांजगीर चाम्पा से राजेश राठौर की रिपोर्ट
जांजगीर। आलोक दुबे के काव्य संग्रह "गांधी को किसने मारा" का विमोचन शील साहित्य परिषद जांजगीर के नरेन्द्र श्रीवास्तव सभागार में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में सर्वप्रथम मां सरस्वती के तैल्य प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार ईश्वरी यादव व पचास से भी अधिक पुस्तकों के रचनाकार विजय राठौर द्वारा किया गया। उसके बाद कवि आलोक दुबे को शाल व श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। अपने काव्य संग्रह पर प्रकाश डालते हुए कवि आलोक दुबे ने कहा कि मेरे मन में बाल्यकाल से ही यह प्रश्न रहा कि " गांधी को किसने मारा" समय के साथ साथ मैं यह तो जान गया कि गांधी को किसने मारा लेकिन यह प्रश्न मुझे बेचैन करता रहा कि"अगर गांधी भी मर सकता है तो बचेगा कौन कोई उत्तर हो तो बताओ" यह स्थिर मान्यता है कि गांधी जी को गोडसे ने मारा लेकिन उसने केवल शरीर की हत्या की , वैचारिक हत्या तो आजकल के लोग कर रहे हैं जो गली-गली शराब बेच रहे हैं व गौ मांस पर भी उन्हीं का शिकंजा है।.
"गांव गांव में शराब
खुलेआम ले लो। बच्चे, बूढ़े और जवान जो चाहे जितना पीओ जितना खाओ
मार मारकर
गौ मांस
तुम्हें फांसी नहीं होगी
क्योंकि तुमने गांधी को नहीं मारा
गांधी को मारा है
नाथूराम ने"
यह गांधी का कौन सा देश है जहां नाथूराम हत्यारा है लेकिन वैचारिक हत्या करने वाले निर्दोष हैं।
" गांधी पर फूल चढ़ाने के पहले
तुम्हें सोचना होगा
तुम्हारे हस्ताक्षर से
क्या क्या बिकता है "।
"गांधी को किसने मारा" काव्य संग्रह में हर रंग की 90 कविताएं हैं जिसमें गांव ,प्रकृति, रिश्ते, वर्तमान,भविष्य अमरैया, नदी पहाड़ समाहित है। वरिष्ठ समीक्षक साहित्यकार ईश्वरी यादव ने इस पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि आलोक दुबे संभावनाओं के कवि हैं उनकी कविता का शीर्षक ही ऐसा है कि पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर कर देता है लगभग सभी कविताएं पठनीय व आकर्षक है।
तत्पश्चात वरिष्ठ साहित्यकार विजय राठौर ने आलोचना करते हुए कहा कि इस संग्रह की कुछ कविताएं राजनैतिक रंग के हैं। लेखन की शैली उत्तम है तथा प्रकृति का चित्रण और परिवार व समाज का जहां चिंतन किया गया है वे श्रेष्ठ कविताएं बन पड़ी है। आलोक जी को इस दिशा में अपने लेखन को बढ़ाना चाहिए। समीक्षक दयानंद गोपाल जी ने कहा कि प्रकृति से निकटता का बोध कराती आलोक जी की कविता पठनीय व संग्रहणीय है। कार्यक्रम संयोजक छत्तीसगढ़ के चर्चित चेहरा कवि दिनेश चतुर्वेदी जी ने आलोक दुबे की एक रचना "बहुत सारे चश्मे" का वाचन करते हुए कहा कि इस प्रकार की कविताएं वर्तमान यथार्थ को प्रकट करती है। लगातार विकास करता हुआ आदमी आज कहा जा रहा है इस पर चिंतन करती कविताएं हैं। इस गरिमामय समारोह को सफल बनाने में शील साहित्य परिषद जांजगीर के साहित्यकारों के साथ चंद्रहास मिश्रा , मदनलाल साहू ,के डी साहू विनोद राठौर,सुखसागर श्याम, कवित्री ममता तिवारी, रमेश तिवारी, अमर गौरहा तथा आसपास के साहित्यकार उपस्थित रहे।