कैसे बनते हैं अघोरी साधु और किसकी करते हैं साधना? जानिए कैसी होती है इनकी रहस्यमयी दुनिया

कैसे बनते हैं अघोरी साधु और किसकी करते हैं साधना? जानिए कैसी होती है इनकी रहस्यमयी दुनिया

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में अघोरी साधुओं को रहस्यमयी होने के साथ खतरनाक माना गया है। लोगों को मन में अक्सर सवाल आता है कि आखिर अघोरी साधु कैसे बनते हैं और वह किसकी साधना करते हैं। आज हम आपको अपनी इस खबर में अघोरी साधुओं के रहस्य के बारे में बताएंगे।  अघोरी साधु जीवन और मृत्यु के बंधनों से दूर होता है। वह श्मशान में अपनी धूनि रमाए रहते हैं और तप करते हैं। अघोरी साधु तंत्र साधना भी करते हैं। अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। अघोरी साधु बनने के लिए एक आम इंसान को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। आखिरी परीक्षा में उनको अपनी जान को भी दांव पर लगाना पड़ता है। इन परीक्षाओं में पास होने पर ही कोई इंसान अघोरी बनता है। अघोरी बनने की प्रक्रिया तीन तरह की की दीक्षाएं शामिल हैं, जिनमें हरित दीक्षा, शिरीन दीक्षा और रंभत दीक्षा हैं। अघोरी गुरु हरिता दीक्षा में अपने शिष्य को गुरुमंत्र देता है। शिष्य के लिए यह यह मंत्र बेहद महत्वपूर्ण है। इसका का जाप नियमित रूप से करना होता है, जिससे मन-मस्तिष्क में एकाग्रता आती है और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। शिरीन दीक्षा में शिष्य को गुरु कई तरह की तंत्र साधना सिखाता है। अघोरी बनने के लिए श्मशान में जाकर तपस्या करनी पड़ती है। इस दौरान शिष्य को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। आखिरी दीक्षा का नाम रंभत दीक्षा है। यह किसी अघोरी साधु के लिए सबसे कठिन दीक्षा होती है। इसमें शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार अपने गुरु को सौंप देना होचा है। गुरु जो कहता है शिष्य को वह करना ही पड़ता है। कहते हैं कि इस दीक्षा में गुरु शिष्य के भीतर के अहंकार को बाहर निकलवा देता है। इसी वजह से अघोरी साधु को अपनी जिंदगी या मौत का कोई भय नहीं होता है। अघोरी शव पर एक पैर रख तपस्या करते हैं। वह शिव की उपासना करते हैं।  साथ ही वह मां काली की भी पूजा करते हैं। अघोरी भगवान शिव के विकराल रूप कालभैरव स्वरूप की आराधना करते हैं। भगवान दत्तात्रेय को अघोरियों का गुरु माना जाता है। दत्तात्रेय को शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है। अघोरी साधु अपने साथ एक मानव खोपड़ी रखते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है। वह श्मशान की भस्म अपने शरीर पर लगाते हैं। अघोरी काला कपड़ा धारण करते हैं।को रहस्यमयी होने के साथ खतरनाक माना गया है। लोगों को मन में अक्सर सवाल आता है कि आखिर अघोरी साधु कैसे बनते हैं और वह किसकी साधना करते हैं। आज हम आपको अपनी इस खबर में अघोरी साधुओं के रहस्य के बारे में बताएंगे।  अघोरी साधु जीवन और मृत्यु के बंधनों से दूर होता है। वह श्मशान में अपनी धूनि रमाए रहते हैं और तप करते हैं। अघोरी साधु तंत्र साधना भी करते हैं। अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। अघोरी साधु बनने के लिए एक आम इंसान को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। आखिरी परीक्षा में उनको अपनी जान को भी दांव पर लगाना पड़ता है। इन परीक्षाओं में पास होने पर ही कोई इंसान अघोरी बनता है। अघोरी बनने की प्रक्रिया तीन तरह की की दीक्षाएं शामिल हैं, जिनमें हरित दीक्षा, शिरीन दीक्षा और रंभत दीक्षा हैं। अघोरी गुरु हरिता दीक्षा में अपने शिष्य को गुरुमंत्र देता है। शिष्य के लिए यह यह मंत्र बेहद महत्वपूर्ण है। इसका का जाप नियमित रूप से करना होता है, जिससे मन-मस्तिष्क में एकाग्रता आती है और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। शिरीन दीक्षा में शिष्य को गुरु कई तरह की तंत्र साधना सिखाता है। अघोरी बनने के लिए श्मशान में जाकर तपस्या करनी पड़ती है। इस दौरान शिष्य को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। आखिरी दीक्षा का नाम रंभत दीक्षा है। यह किसी अघोरी साधु के लिए सबसे कठिन दीक्षा होती है। इसमें शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार अपने गुरु को सौंप देना होचा है। गुरु जो कहता है शिष्य को वह करना ही पड़ता है। कहते हैं कि इस दीक्षा में गुरु शिष्य के भीतर के अहंकार को बाहर निकलवा देता है। इसी वजह से अघोरी साधु को अपनी जिंदगी या मौत का कोई भय नहीं होता है। अघोरी शव पर एक पैर रख तपस्या करते हैं। वह शिव की उपासना करते हैं।  साथ ही वह मां काली की भी पूजा करते हैं। अघोरी भगवान शिव के विकराल रूप कालभैरव स्वरूप की आराधना करते हैं। भगवान दत्तात्रेय को अघोरियों का गुरु माना जाता है। दत्तात्रेय को शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है। अघोरी साधु अपने साथ एक मानव खोपड़ी रखते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है। वह श्मशान की भस्म अपने शरीर पर लगाते हैं। अघोरी काला कपड़ा धारण करते हैं।