गुरु की पूजा ही परमात्मा शिव की पूजा है : डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

गुरु की पूजा ही परमात्मा शिव की पूजा है : डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर में चल रहे चातुर्मास प्रवचनमाला के क्रम में शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इंदुभवानंद  तीर्थ जी महाराज ने विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों की मार्मिक व्याख्या करते हुए गुरु को भी शिवलिंग बताया। उन्होंने कहा कि शिष्य को गुरु की पूजा परमात्मा शिव के समान करना चाहिए। गुरु ही परमात्मा शिव का स्वरूप माना जाता है। गुरु के शरीर को ही शिवलिंग समझना चाहिए। गुरु की  सेवा गुरु लिंग की पूजा होती है। शरीर मन और वाणी से की गई गुरु सेवा शास्त्र ज्ञान प्राप्त कराती है। अपनी शक्ति से शक्य अथवा अशक्त्य जिस बात का भी आदेश गुरु ने दिया हो, उसका पालन प्राण और धन लगाकर पवित्रात्मा से शिष्य करना चाहिए।

इस प्रकार गुरु के अनुशासन में रहने वाला शिष्य ही वास्तव शिष्य कहलाता है। शिष्य को निरंतर गुरु के सानिध्य में रहने के कारण उसे पुत्र भी कहा गया है। दो प्रकार की संतान होती है एक नाद परंपरा की संतान और दूसरी बिंदु परंपरा की संतान। बिंदु परंपरा की संतान गृहस्थों की होती है और नाद परंपरा की जो संतान हैं वह गुरुओं की होती है, गुरु शिष्य के कान में मंत्र देकर उसके सूक्ष्म शरीर को बनता है इसलिए गुरु को भी पिता कहा जाता है।शरीर को उत्पन्न करने वाला पिता तो पुत्र को संसार के प्रपंच में डुबो देता है, किंतु ज्ञान देने वाला पिता गुरु संसार सागर से उसको पार कर देता है,इन दोनों पिताओं का अंतर जान करके शिष्य को गुरु रूपी पिता की सेवा करना चाहिए और अपने द्वारा कमाए हुए धन से, अपने शरीर से एवं मन ,वाणी कर्म से समर्पित होकर अपने गुरु की विशेष सेवा करना चाहिए।

गुरु की सेवा ही परमात्मा की पूजा मानी जाती है गुरु का शेष जल तथा अन्न आदि से बना हुआ शिवोच्छिष्ट शिव भक्तों को और शिष्यों के लिए ग्राह्य तथा भोज्य है तथा आत्म शुद्धि करने वाला होता है। गुरु की आज्ञा के बिना उपयोग में लाया हुआ सब कुछ पदार्थ वैसा ही है जैसे चोर चोरी करके लाई वस्तु का उपयोग करता है।अतः सारे यत्न और प्रयत्न से ज्ञानवान गुरु की ही खोज करना चाहिए गुरु से विशेष ज्ञानवान  पुरुष मिल जाए तो उसे यत्न पूर्वक गुरु बना लेना चाहिए। अज्ञान रूपी बंधन से छूटना ही जीव मात्र के लिए साध्य पुरुषार्थ है अतः जो विशेष ज्ञानवान है वही जीव को उस बंधन से छुडा सकता है इसलिए ज्ञानी गुरु की प्राप्ति ही शिव की प्राप्ति है। कथा के पूर्व जगद्गुरुकुलम् के छात्रों ने वेद पाठ किया वैदिक विद्वानों ने आरती संपन्न की तत्पश्चात स्वामी जी ने कथा प्रारंभ की।