आर्य समाज का प्रमाणपत्र वैध विवाह का प्रमाण नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र, वैवाहिक संबंधों की वैधता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा-7 के अनुसार किसी भी हिंदू विवाह को वैध मानने के लिए आवश्यक धार्मिक संस्कारों—जैसे सप्तपदी, कण्यादान और मंत्रोच्चारण—का संपन्न होना अनिवार्य है। अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि विवाह के अनिवार्य रीति-रिवाज संपन्न नहीं हुए थे और केवल प्रमाणपत्र के आधार पर शादी को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई विवाह वास्तव में धार्मिक विधियों के अनुसार संपन्न हुआ हो, तो उस स्थिति में आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र सहायक दस्तावेज़ हो सकता है, लेकिन उसे मुख्य और एकमात्र सबूत नहीं माना जाएगा। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि विवाह की वैधता साबित करने के लिए सिर्फ प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि विवाह के सभी धार्मिक और सामाजिक पहलुओं का प्रमाणिक होना ज़रूरी है।