विकारों से मुक्त जीवन ही आत्मा को परमात्मा बनाएगा : मनीष सागर महाराज

विकारों से मुक्त जीवन ही आत्मा को परमात्मा बनाएगा : मनीष सागर महाराज

अपनी योग्यताएं बढ़ाते जाएं, आत्म स्वरूप को पहचाने

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में मंगलवार को चातुर्मासिक प्रचवनमाला में परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि हमारा जीवन निर्विकार होना चाहिए। विकार मुक्त जीवन ही हमारी आत्मा की अशुद्धियों को दूर कर परमात्मा बनाएगा। मोह, माया, मान, लोभ,क्रोध आदि विकार जीवन में नहीं होने चाहिए। केवल क्षमा का भाव होना चाहिए। ऐसा काम नहीं करो, जिससे आपको नीचे गिरना पड़े। जैन धर्म भी कहता है- आप नीचे से ऊपर उठो। आत्मा से परमात्मा बनो। जीवन में विकार नहीं करना है। यह अभ्यास होना चाहिए कि स्थिति कैसी भी आए साधना करते-करते ऐसी स्थिति प्राप्त करो कि मन की स्थिति ना बिगड़े।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जब क्रोध आए तो जा भी सकता है। अभ्यास ऐसा हो कि क्रोध नहीं करेंगे। व्यक्ति की आदतें कितनी भी बिगड़ी हो, जब वह अपनों से मिलता है तो विकार नहीं आते। यही प्रयास बाहर भी होना चाहिए। बाहर भी विकार ना आए ऐसा प्रयास करो। आपके भीतर जो योग्यता है वैसा बनने का प्रयास करो। जहां विकार है वहां भार है। जहां विकार नहीं वहां आनंद है। आप में क्रोध नहीं है तो आपको फायदा होगा। क्रोध नहीं होने से आप शांत रहोगे। लगातार अपने योग्यता को बढ़ाएं। इस भाव में नहीं होगा लेकिन आगे आने वाले  भवों में प्रयास सफल होगा। ऐसा प्रयास कर ही आत्मा परमात्मा बनेगी।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हम हर चीज प्रारंभ चिंतन से करते हैं। धीरे-धीरे उसे चिंताओं में पहुंचा देते हैं। अंत में चिता ही बच जाती है। चिता में जाने से पूर्व चिंतन की चिंता में रहते हैं। आत्मा ही परमात्मा बनेगी यह आपके भीतर शंका है। आत्मा को पूरी तरह आपने समझा नहीं है। आत्मशक्ति को पहचाना नहीं है। आपको विश्वास नहीं है कि आत्मशक्ति में बहुत ताकत है। जिस दिन अपनी आत्मशक्ति पर भरोसा हो जाएगा, उस दिन आत्मा निर्विकार हो जाएगी। सद्गुरु जो सत्य बताते हैं वह समझ आना चाहिए। विश्वास होगा, तभी आनंद आएगा।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि आत्मा यदि परमात्मा बनेगी तो स्वयं के बल पर ही बनेगी। वह बल आपके रहता है। इसे आत्म स्वरूप कहते हैं। यही स्वयं का स्वरूप है। यह हर आत्मा में मौजूद है। आत्मा के स्वभाव को समझेंगे तो इसकी पहचान भी समझ आती है। आत्मा के अनंत सद्गुण किसी भी गति में कभी नष्ट नहीं हो सकते। आत्मा का स्वभाव किसी से प्रभावित नहीं होता है। जैसे परमात्मा किसी भी परिस्थिति में प्रभावित नहीं होते हैं।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जिस दिन यह अनुभव होगा कि मैं स्वभाव से परमात्मा ही हूं। यह अनुभूति राग और द्वेष को काम करती है। हमारे परमात्माओं ने पर को छोड़ा और स्व का आश्रय लिया। स्वयं जैसे हैं वैसे अनुभूति किए। राग और द्वेष को छोड़कर आत्मा के शुद्ध स्वभाव को ध्यान में रखकर आत्म साधना में लीन रहे। यही मार्ग परमात्मा बनने का है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमें हमारी धारणाओं और मान्यताओं की दीवार को भेद कर भीतर प्रवेश करना है। हमने बहुत सी धारणाएं और मान्यताएं बना ली है। इन्हीं में उलझ कर रहते हैं। हम हमारी वास्तविक पहचान नहीं जानते। हम अपनी आत्म शक्ति को नहीं पहचानते। आत्मा के स्वभाव को नहीं जानते। सिर्फ भौतिक पहचान को ही अपना मान बैठे हैं। अपना नाम, रुतबा,धन संपदा आदि भौतिक सुखों को के मोह में फंसकर असली पहचान को भूल गए हैं। भौतिक पहचान अस्थाई है। यह शरीर भी अस्थाई है। यह एक दिन छूट जाएगा। आत्मा जैसी थी वैसी ही रहेगी।