पंडरीपानी के बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर

पंडरीपानी के बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर

शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क की समस्याओं से जूझ रहे हैं ग्रामीण 
गरियाबंद से विजय साहू की रिपोर्ट
गरियाबंद। जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के दूरस्थ आदिवासी ग्राम पंडरीपानी का दौरा किया। इस दौरान ग्रामीणों ने उन्हें गांव की गंभीर समस्याओं से अवगत कराया। दौरे में ग्राम के सरपंच  मनराखन मरकाम, ग्राम प्रमुख पंचराम मरकाम, धनेश्वर नेताम और धनंजय मरकाम,गुंजेश कपिल,नेपाल सोरी,वीरेंद्र राजपूत सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क और आवास की समस्याओं को दूर करने की गुहार लगाई।

ग्रामीणों ने बताया कि गांव में स्कूल भवन अत्यंत जर्जर हालत में है, जिससे बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन और नल तो लग चुके हैं, लेकिन पानी टंकी का निर्माण अब तक नहीं हुआ, जिससे योजना का कोई लाभ नहीं मिल सका है।

गांव में एकमात्र सार्वजनिक चबूतरा, जिसे ग्रामीणों ने मिलकर बनवाया था, वन विभाग द्वारा यह कहकर तोड़ दिया गया कि नया बनाया जाएगा, लेकिन अब तक पुनर्निर्माण नहीं हुआ। स्वास्थ्य सुविधा नगण्य है और राशन के लिए ग्रामीणों को 10 किमी दूर कच्चे रास्ते से मारागांव जाना पड़ता है, क्योंकि गांव में अब तक पक्की सड़क नहीं बन पाई है।

आवास योजना भी अधर में
ग्रामीणों ने बताया कि तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में दर्जनों ग्रामीणों को मुख्यमंत्री आवास योजना के अंतर्गत प्रथम किश्त प्राप्त हुई थी, लेकिन योजना अब बंद हो चुकी है। वहीं, प्रधानमंत्री जनमन योजना के अंतर्गत इन अति पिछड़ी जनजातियों को नया आवास मिलना था पर आज तक एक भी मकान स्वीकृत नहीं हुआ। कहीं न कहीं यह जिला प्रशासन की गंभीर विफलता को दर्शाता है जो इस गांव तक बुनियादी सरकारी सुविधाएं तक नहीं पहुंचा सका है।

पंडरीपानी गांव विकास से वंचित शासन-प्रशासन की नाकामी का प्रत्यक्ष प्रमाण : संजय नेताम जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने कहा सरकार द्वारा अति पिछड़ी जनजातियों के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं प्रधानमंत्री जनमन योजना, धरती आबा शिविर, सड़क-पुल-पुलिया, आवास इन सबके लिए विशेष बजट और विभाग गठित हैं। इसके बावजूद यदि पंडरीपानी जैसे गांव विकास से वंचित हैं, तो यह शासन-प्रशासन की नाकामी का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

हम उस देश में रहते हैं जहां संसद भवन, विधानसभा भवन,मंत्रियों, विधायकों,सांसदों के बंगले में हल्की सी दरार आते ही नया भवन खड़ा कर दिया जाता है, पर दुर्भाग्य है कि हमारे आदिवासी बच्चे आज भी पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। यदि समय रहते शासन-प्रशासन ने पंडरीपानी जैसे गांवों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया, तो हम सड़क की लड़ाई लड़ने को मजबूर होंगे।

विकास हमारा अधिकार है, और हम इस अधिकार के लिए हर मंच पर आवाज उठाएंगे।