संयमी पुरुष में कोप एवं प्रसाद दोनों रहते है : डॉ. इन्दुभवानन्द तीर्थ महाराज

रायपुर। शंकराचार्य आश्रम बोरिया कला रायपुर में चातुर्मास प्रवचन माला के अंतर्गत शिव पुराण की दिव्य कथा को सुनाते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इन्दुभवानन्द तीर्थ ने बताया कि संयमी पुरुष में कोप और प्रसाद दोनों रहते हैं। भगवान शिव संयमी एव् योगी हैं उनमें कोप भी और प्रसन्नता भी निवास करती है। भगवान शंकर के कारण कामदेव का दहन हुआ है और भगवान शंकर की कृपा से रति को वरदान भी प्राप्त हो गया है। भगवान शिव वरदान भी देते हैं और क्रोध भी करते हैं। दोनों क्रोध एवं प्रसाद योगी पुरुष मेंनित्य ही निवास करते है। भगवान शंकर योगी हैं उनका चित्त कभी व्यथित नहीं होता है, हर्ष और प्रसन्नता में वे सम रहते हैं, कोई भी परिस्थिति उनको बांधकनहीं सकती है।
ब्रह्मा जी को समझाते हुए भगवान विष्णु कहते हैं कि आपकी सद्बुद्धि नष्ट हो गई है आप में कुमति ने प्रवेश कर लिया है जिस कारण आप शंकर जी को सामान्य देवता समझ रहे हैं। और उनसे द्रोह कर रहे भगवान शिव समस्त सृष्टि के कर्ता है, निर्गुण है नित्य हैं, निर्विकार हैं, वेद उनकी नेति नेति कहकर के स्तुति करते हैं। सदा योग में वे निरत रहते हैं योग मार्ग को दिखाने वाले हैं। संसार के गर्व को दूर करने वाले हैं और सदैव दीनों पर दया करने वाले हैं इसलिए आप उन्हें की शरण में जाएं उनकी कृपा से ही आपके मनोरथ की सिद्ध होगी आप शिवजी का स्मरण करके भगवती शिवा की कठोर तपस्या करेंगे तो निश्चित ही आपको भगवान शिव माता पार्वती की कृपा प्राप्त होगी।
कथा के पूर्व शंकराचार्य आश्रम के वैदिक विद्वानों ने भगवान शिव का वैदिक विधि से पूजन किया तथा जगतगुरुकुलम् के छात्रों ने मंगल स्तुति का पाठ किया।
तुलसी जयंती के उपलक्ष्य पर बोलते हुए पूज्य डॉ. इन्दुभवानन्द तीर्थ महाराज ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी वाल्मीकि के ही अवतार थे वाल्मीकि जीने मश रामायण की रचना संस्कृत ग् भाषा में कर दी थी लोगों को वह अत्यंत दुरुह हो गई थी भगवान राम की कथा लोक वार्ता में निबद्धहोना आवश्यक था इस हेतु से भगवान शिव ने वाल्मीकि को पुनः तुलसी के रूप में अवतार के लिए प्रेरित किया और तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के रूप में भगवान राम की दिव्या अमृतमयी कथा उपहार जन समाज को प्रदान किया भारतीय सनातन समाज गोस्वामी तुलसीदास जी का आज भी ऋणी है।