श्रद्धा हीन के मन में संशय होता है : डॉ. इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

श्रद्धा हीन के मन में संशय होता है :  डॉ. इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला में चल रहे चातुर्मास प्रवचन माला के क्रम को गति देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ .स्वामी इन्दुभवानन्द  तीर्थ जी महाराज ने शिव कथा के प्रसंग में बताया कि जिसके मन में संशय हो जाता है उसका विनाश हो जाता है। जिसके मन में श्रद्धा नहीं होती है उसी के मन में संशय उत्पन्न होता है, जो अज्ञानी होता है वही शंकालु होता है। श्रद्धा उत्पन्न होने से होने से ज्ञान उत्पन्न होता है वह ज्ञान होने से संशय नष्ट हो जाता है जब तक संशय मन में रहता है तब तक व्यक्ति विश्वास नहीं करता।

भगवान शिव माता सती को समझाते हुए कहते हैं की परमब्रह्म परमात्मा ही दाशरथी पुत्र राम के रूप में अवतार लेकर इस जंगल में भ्रमण कर रहे हैं। यह मेरे आराध्य है इसलिए मैंने इनको प्रणाम किया पर सती के मन में संदेह हो गया कि शंकर ही सर्वश्रेष्ठ देवता है, सर्वश्रेष्ठ हो करके भी यह राजकुमारों को प्रणाम कर रहे भगवान शिव समझ गए, की सती के मन में मोह उत्पन्न हो गया है। उन्होंने सती जी को समझने की कोशिश की। कहा "इनमें और मुझ में" कोई भेद नहीं है "ये हरि है" और "मैं हर हूं" इस दृष्टि से हम एक ही तत्व के दो रूप है किंतु सती के मन में तोष नहीं हुआ तो वे भगवान राम की परीक्षा लेने चली गई जिस कारण भगवान शंकर के मन में सती के प्रति असंतोष हो गया हो गया।

भगवान शिव के असंतोष को देखकर सती को भी अपने शरीर से असंतोष हो गया और उन्होंने अपने शरीर का परित्याग अपने पिता की यज्ञ में कर दिया वास्तव में शिव एवं शिवा का कभी वियोग नहीं हो सकता है।  जैसे पानी और तरंग, शब्द अर्थ दो रहते हुए भी एक है वैसे ही शिव पार्वती, पार्वती और शिव एक है।