कई विवादों के बाद आज रिलीज हुई कंगना की 'इमरजेंसी', जानें कैसी है यह फिल्म
नई दिल्ली। कंगना रनौत के बारे में कई कुछ भी कहे, वो किसी के बारे में कुछ भी कहें लेकिन एक बात तो है कि एक्ट्रेस कमाल की है, लेकिन कमाल की एक्ट्रेस भी कई बार चूक जाती है और इमरजेंसी में यही हुआ है। ये फिल्म देखते हुए थिएटर में बैठे दर्शकों को ऐसा लगता है कि जैसे इमरजेंसी उन्हीं पर लग गई है, ये फिल्म झेली नहीं जाती और इसमें कुछ ऐसा नहीं दिखता जो शॉकिंग हो या फिर किसी पहले से पता चीज को किसी कमाल अंदाज में पेश कर दिया गया हो तो इस बार कंगना चूक गईं।
ये कहानी इमरजेंसी के दौर की है, और इसमें इंदिरा गांधी की पूरी कहानी दिखाई गई है, कैसे उन्होंने इमरजेंसी लगाई, देश में क्या हालात बने, कैसे फिर वो सत्ता से बाहर हुई, इमरजेंसी में उनके बेटे संजय गांधी का क्या रोल था, किस तरह से और किसी हालात में इंदिरा गांधी की हत्या हुआ। इमरजेंसी की कहानी को इस पूरी फिल्म में समेटने की कोशिश की गई लेकिन सिर्फ कोशिश ही की गई है ये कोशिश कामयाब नहीं हुई।
इमरजेंसी के बारे में बहुत से लोगों को पता है और आज के दौर पर बहुत से बच्चों को नहीं भी पता होगा लेकिन फिर भी थोड़ा बहुत हर कोई जानता है और जो ज्यादा जानता है उसको इस फिल्म में कुछ नया नहीं लगेगा क्योंकि इमरजेंसी पर कई शानदार किताबें आ चुकी हैं। और इससे बहुत ज्यादा कुछ लिखा और कई डॉक्यूमेंट्रीज में दिखाया जा चुका है। यहां कुछ ऐसा नया नहीं दिखता, औऱ कुछ चीजों को तो इस तरह से दिखाया गया है कि जिन्हें उन चीजों के बारे में नहीं पत उन्हें समझ ही नहीं आएगा और उनके सिर के ऊपर से चीजें निकल जाएंगी। संजय गांधी पर जरूरत से ज्यादा फोकस किया गया है औऱ कई जगह ये संजय गांधी की कहानी लगती है, उतने की जरूरत नहीं थी। कई बार पहले पता वाकया भी जब स्क्रीन पर दिखता है तो उसका प्रेजेंटेशन आपको चौंकाता है लेकिन यहां वैसा भी कुछ नहीं होता। ये फिल्म उन लोगों के लिए एक डॉक्यूमेंट बन सकती थी जिन्हें इमरजेंसी के बारे में ज्यादा नहीं पता लेकिन ऐसा नहीं हो पाया, ये फिल्म निराश करती है और ज्यादा निराश इसलिए करती है क्योंकि इसे कंगना जैसी कमाल की कलाकार ने बनाया है।
कंगना को उनकी एक्टिंग के लिए तमाम तारीफें मिलती है, यहां कंगना ने काफी कोशिश की है इंदिरा बनने की, दिखने की, इंदिरा होने की, वो लगती भी हैं लेकिन जितना उम्मीद थी वो इतना इम्प्रेस नहीं कर पाती। अगर पर्दे पर इंदिरा बनी कंगना को देखने के बाद भी आपको ये सोचना पड़े कि कौन कौन इंदिरा बना था और किसने बेहतर किया था तो आप समझ सकते हैं कि काम में कहीं ना कहीं कमी रह गई है। अनुपम खेर जेपी नारायण के रोल में जमे हैं। महिमा चौधऱी पुपुल जयकर के रोल में अच्छी लगती है। अटल जी के रोल में श्रेय़स तलपड़े उतने नहीं जमते। संजय गांधी के रोल में विशाक नायर का काम अच्छा है, वो संजय लगते हैं,बाबू जगजीवन राल के रोल में सतीश कौशिक शानदार हैं।
कंगना रनौत ने ही फिल्म को डायरेक्ट किया है, ये फिल्म सेंसर में अटकी भी और कटी छंटी भी, कंगना को इस फिल्म को रिलीज करवाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। ऐसी फिल्मों को बनाना और डायरेक्ट करना आसान नहीं होता क्योंकि ये हमारी हिस्ट्री का बहुत खास हिस्सा हैं। कंगना ने अच्छी कोशिश की है, इतने सारे कलाकारों को साथ लाना, डायरेक्ट करना , आसान नहीं था लेकिन कुल मिलाकर कंगना को असर पैदा नहीं कर पाई कि थिएटर में बैठा दर्शक वाह वाह कर उठे, उनका डायरेक्शन ठीक ठाक है लेकिन उनकी एक्टिंग की तरह कमाल नहीं है।