आज सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता राजनीति का पर्याय बन गई है : शंकराचार्य

कवर्धा (चैनल इंडिया)। पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा है कि सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा परायण, स्वस्थ एवं सर्वहितप्रद व्यक्ति एवं समाज की संरचना विश्व स्तर पर राजनीति की परिभाषा क्रियान्वित हो। इसको क्रियान्वित करने पर ही व्यक्ति और समाज का उत्कर्ष हो सकता है।
यहां मीडिया से चर्चा करते हुए पुरी शंकराचार्य ने जात पात मिटाने संबंधी एक प्रश्न के उत्तर में गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: जाति धर्म कुल धर्म के स्वभाव और प्रभाव को ध्यान में रखकर व्यवहार करना चाहिए। भेद स्वभावसिद्ध है। भेद का सदुपयोग निर्जीव परमात्मा के मनोनिवेश में होना चाहिए।
शंकराचार्य ने हिंदू राष्ट्र अभियान के संबंध में बताया कि आज से सवा तीन वर्ष पूर्व उनके मु से तीन बार यह निकला हिंदू राष्ट्र हिंदू राष्ट्र हिट्र राष्ट्र, तब से यह अभियान चल पड़ा है। उन्होंने कहा कि मैं उधार दी हुई बात नहीं कहता हूं। भगवान और सिद्ध ऋषिमुनि जो बात बोलते हैं, वही मैं कहता हूं। सब के पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिंदू थे। इस बात को कौन झूठा सिद्ध कर सकता है। दर्शन विज्ञान और व्यवहार पर सामंजस्य साथ कर आप जो कहेंगे उसे सुना जाएगा। उन्होंने कहा कि तत्व क्षमोहिस्वभावोधियाम’ अर्थात बुद्धि सत्य का पक्ष लेती है। गुलाम नबी आजाद ने भी यह स्वीकार किया कि उनके पूर्वज सनातनी थे।
क्या वर्तमान लोकतंत्र में त्रुटि है, इन प्रश्न का उत्तर देते हुए शंकराचार्य ने महाभारत में मंत्रिमंडल के निर्माण के संबंध में दी गई व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि मंत्रिमंडल में चार शिक्षाविद ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय, 21 कृषि गोरस और वाणिज्य को क्रियान्वित करने वाले अर्थशास्त्र समाज वैश्य, तीन शुद्ध, जिन पर कुटीर उद्योगों के संचालन को जिम्मेदारी दी गई तथा एक मून सांस्कृतिक मंत्री के रूप में होते थे। उन्होंने आगे कहा कि विश्व में 204 देश हैं राजनेताओं का स्तर इतना गिर गया है कि वह देशी-विदेशी कंपनियों को ठेका देते हैं। वर्तमान में 13 कंपनियां देश का संचालन कर रही हैं इस प्रकार राजनेताओं ने अपनी दुर्बलता का परिचय दिया है। शंकराचाय ने कहा कि राजनीति का अर्थ दंड नीति अर्थनीति छात्र धर्म भी है। उन्माद पूर्ण शासन तंत्र का नाम राजनीति नहीं है आज सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता राजनीति का पर्याय बन गई है। कूटनीति के नांध प्रभद का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि नमन मिलन, दमन, अंकन, और अनुगमन यह कूटनीति के पांच प्रभेद होते हैं।