पुत्र सुख संसार का सबसे बड़ा सुख : इंदुभवानंद महाराज

पुत्र सुख संसार का सबसे बड़ा सुख :  इंदुभवानंद महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर में चल रहे चातुर्मास प्रवचनमाला के क्रम को गति देते हुए कार्तिक मास के पुनीत पर्व पर श्रीमद् देवी भागवत के प्रसंग पर शंकराचार्य आश्रम के प्रमुख डॉक्टर स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज ने बताया कि संसार का सबसे बड़ा सुख पुत्र सुख माना जाता है। वेदव्यास जी ने सरस्वती नदी के किनारे अपने आश्रम में गौरैया पक्षी का जोड़ा  देखकर के आश्चर्य चकित हो गए अंडे से तत्काल पैदा हुआ लाल मुखवाले सुंदर अंगों वाले एवं पंख रहित शिशु को घोंसले में छोड़कर के गौरैया चिरैया का दंपति परिश्रमपूर्वक चारा लाकर उसके मुख में डाल रहा था। यह दृश्य देख करके वेदव्यास जी मोहग्रसित हो गए। विचार करने लगे पक्षियों में ऐसा अद्भुत प्रेम है तो मनुष्य की तो बात ही क्या है? अपनी सेवा का फल चाहने वाले मनुष्य में ऐसा प्रेम व्यवहार होने में आश्चर्य ही क्या है?


पुत्र के शरीर का आलिंगन और विशेष रूप से उसका लालन-पालन इस संसार में सभी सुखों में उत्तम सुख माना जाता है। पुत्र रहित मनुष्य की ना तो सद्गति होती है और ना तो स्वर्ग की प्राप्ति होती है अतः परलोक साधन के लिए पुत्र से बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है। संतानहीन प्राणी मृत्यु काल में दुखी रहता है मन में विचार करता है कि मेरे पास धन है, भवन है, पर इस धन और भवन का कोई बारिश नहीं है उसका मन भ्रमित होता है। भ्रांत मन वाले प्राणी की दुर्गति अवश्य होती है।
मुझे भी पुत्र प्राप्त करना चाहिए ऐसा विचार करके वह तप  करने के लिए मेरु पर्वत पर जाने का विचार कर रहे थे इसी बीच में नारद जी का आगमन हो गया। नारद जी ने भगवती देवी की उपासना की ओर वेदव्यास जी को प्रेरित कर दिया।
कार्यक्रम के सभी भक्तों ने मिलकर श्रीमद् देवी भागवत पुराण की आरती और पुष्पांजलि संपन्न की। कथा यजमान पुहुपराम साहू ने आरती संपन्न की।