शंकराचार्य आश्रम में दांडी स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज का पावन प्रकटोत्सव 6 को

शंकराचार्य आश्रम में दांडी स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज का पावन प्रकटोत्सव 6 को

धूमधाम से मनाया जाएगा शरद पूर्णिमा महामहोत्सव और पावन प्रकटोत्सव

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम रायपुर में परम पूज्य दांडी स्वामी
इंदुभवानंद तीर्थ जी महाराज का पावन प्रकटोत्सव 6 अक्टूबर सोमवार को मनाया जाएगा। साथ ही धूमधाम से शरद पूर्णिमा महामहोत्सव मनाया जाएगा। पराम्बा भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी का विशेष पूजन प्रातः काल 5:30 बजे प्रारंभ होगा। प्रातःकाल सिद्धेश्वर महादेव का पूजन गणेश, हनुमान,भैरव,पूजन होगा। भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी का पूजन श्रंगार आरती सुबह 10:30 बजे होगी। 11:15 ललिता सहस्त्र नाम परायण होगा। 11:30 चौंसठ योगिनी माताओं को मालपुआ भोग लगाया जाएगा। अपराह्न 3:30 बजे श्री जगद्गुरु शंकराचार्य गौशाला में गौ पूजन होगा। संध्या 4:30 से 5:30 प्रवचन होगा। शाम 6 बजे से भजन प्रारंभ होगा।  7 बजे से भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी का पूजन होगा। रात्रि 8 बजे दीपार्चन और रात्रि  9 तुला दान फल एवं अन्न दान कार्यक्रम होगा। रात्रि 9:15 कत्थक नृत्य प्रस्तुति होगी। रात्रि 9:30 महारास नृत्य प्रस्तुति होगी। परम पूज्य 1008 यतिप्रवर दांडी स्वामी श्री इंदुभवानंद  तीर्थ जी महाराज का अभिनंदन सभी भक्तों के द्वारा किया जाएगा।

दांडी स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज का जीवन परिचय

परम पवित्र आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को तदनुसार 29/11/1966 को शुभ दिन शुभ नक्षत्र सिद्ध योग में जिला जबलपुर तहसील पाटन ( अब शहपुरा) के ग्राम सूखा भारतपुर के परम कुलीन परिवार में परम पूज्य पिता श्री भगवान प्रसाद तिवारी जी एवं पूज्यनीया माता श्रीमती खोवा बाई तिवारी जी के यहां भगवान शंकर एवं मां नर्मदा जी की अहैतुकी कृपा से एक विलक्षण पुत्र का जन्म हुआ। भाईयों के क्रम में तृतीय क्रम में जन्में बालक की बाल्यकाल से ही ईश्वर आस्था मां नर्मदा के प्रति प्रेम श्रद्धा उत्पन्न हो गई। बाल्यकाल का नामकरण हुआ " श्री रेवा प्रसाद तिवारी"

पूज्य शंकराचार्य जी को गुरुदेव मानकर 1983 से सेवा में तत्पर

पूज्य पिताजी के साथ रहते हुए विद्यालय की शिक्षा अपने गृह ग्राम सूखा भारतपुर मे ग्रहण की यही से संस्कृत भाषा के प्रति अपार प्रेम का उदय ह्रदय में उत्पन्न हुआ। तब आगे के अध्ययन के लिए परम पूज्य अनन्तश्रीविभूषित् ज्योतिष् एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा स्थापित परमहंसी गंगा आश्रम में संचालित संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया। कुछ वर्षों अध्ययन करने के बाद आप की विलक्षण बुद्धि और लगन ने आपको बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की ओर आकर्षित किया। तब आपने निश्चित किया एवं परम पूज्य गुरुदेव की आज्ञा से अब काशी में अध्ययन प्रारंभ हो और आपने काशी की यात्रा की। यहां जाकर आप आनंद वनम् (लंका) नामक स्थान पर रहे और विख्यात विश्वविद्यालय श्री संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से अपना आचार्य पर्यंत अध्ययन किया। इसी समय आपने अनेक स्थानों पर अनेक विद्वानों के साथ न्याय, वेदांत,सांख्य ,व्याकरण , मीमांसा, साहित्य और अपने प्रिय विषय ज्योतिष का अध्ययन किया।साथ ही पूज्य शंकराचार्यजी को अपने पूज्य गुरुदेव मानकर 1983 से सेवा में तत्पर रहने लगे। समय समय में चातुर्मास में जाना अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अपने इष्ट मित्रों के साथ भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी की आराधना में पूज्य गुरुदेव भगवान से प्राप्त की। दस महाविद्यायों में आपने षोडशी और बगलामुखी की साधना की और सुदृढ़ साधकों में सम्मिलित हुए। साथ ही आपने पीएचडी उपाधि प्राप्त की।

आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण की दीक्षा

काशी अध्ययन के उपरांत पूज्य गुरुदेव भगवान की आज्ञा से आप मध्यप्रदेश के जबलपुर में अपने अनेक शिष्यों को योग्य बनाया। जो आज अपने अपने क्षेत्र में प्रगति प्राप्त किए हुए हैं। आपकी ईश्वर गुरु में निष्ठा अध्यात्म में निष्ठा होने के कारण वह समर्पण का शुभ दिन आया। 2006 में परम पवित्र बसंत पंचमी का दिन जब आपको परम पूज्य प्रातः स्मरणीय अनंत श्री विभूषित परिव्राजकाचार्य ज्योतिष एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु धर्म सम्राट ब्रह्मलीन श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सानिध्य में प्रातःकाल की बेला में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण की दीक्षा प्राप्त हुई। पूज्य गुरुदेव भगवान द्वारा नामकरण हुआ ब्रह्मचारी डॉ. सच्चिदानन्द जी महाराज। पूज्य गुरुदेव भगवान की आज्ञा से आपको पूर्व मध्यप्रदेश और अब वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्री जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर के प्रभारी एवं मुख्य साधक के रूप में लाया गया। परम पूज्य गुरुदेव भगवान के प्रथम प्रवास के उपरांत रायपुर आश्रम में आपका पुनः नामकरण किया गया। नाम हुआ ब्रह्मचारी डॉ. इंदुभवानंद जी महाराज।

सन् 2025 में महाकुंभ के शुभ अवसर पर प्रदान हुई दंड दीक्षा

परम पूज्य ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी महाराज के श्री वरदहस्तो से श्रीविद्या का पूर्णाभिषेक हुआ। तब से लेकर आज तक आप भगवती राजराजेश्वरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी की अनन्य उपासना में निष्ठा एवं भक्ति से तत्पर है। साथ ही विद्या प्रदान भी कराने के लिए विद्यार्थीयों को अध्ययन कराते हैं। गौ सेवा के लिए गौशाला आदि का संचालन कुशल रीति से निर्वाह करते हैं। आपकी साधना ,विद्या, ज्ञान, स्वभाव, प्रेम, से सभी अत्यंत लाभान्वित हो रहे हैं। आश्रम में समय समय पर कार्यक्रम आपके मार्गदर्शन में होतें है। सभी गुरु परिवार आपके सानिध्य में मार्गदर्शन में भगवती राजराजेश्वरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी एवं पूज्य गुरुदेव भगवान की साधना में लगे हुए है। सन् 2025 में महाकुंभ के शुभ अवसर पर आपके जीवन में पुनः वह क्षण आया जो साक्षात् भगवती पराम्बा राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी प्रेमाम्बा एवं परम पूज्य ब्रह्मलीन महाराजश्री की कृपा अनुग्रह हुआ। आध्यात्म के शिखर की ओर कदम बढ़ा। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय अनंत श्री विभूषित् पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने प्रथम दण्डी संन्यासी के रूप में आपको दण्ड दीक्षा प्रदान की एवं नाम परम पूज्य दांडी स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ जी महाराज हुआ।