फर्जी नियुक्ति के आरोप से बरी हुए व्याख्याता सूर्यकांत कश्यप, हाईकोर्ट ने बताया शिकायत फर्जी

फर्जी नियुक्ति के आरोप से बरी हुए व्याख्याता सूर्यकांत कश्यप, हाईकोर्ट ने बताया शिकायत फर्जी

जांजगीर-चांपा से राजेश राठौर की रिपोर्ट 
बिलासपुर। फर्जी नियुक्ति के कथित मामले में तीन साल तक निलंबन का दंश झेल चुके शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला, तिलाई में पदस्थ व्याख्याता एल.बी. सूर्यकांत कश्यप को आखिरकार न्याय मिल गया है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में उनकी नियुक्ति को वैध ठहराते हुए शिकायत को फर्जी करार दिया है। कोर्ट के इस फैसले से सूर्यकांत कश्यप को बड़ी राहत मिली है, वहीं इस मामले ने शिक्षा विभाग में हलचल मचा दी है।

क्या था मामला?
सूर्यकांत कश्यप की नियुक्ति को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा फर्जी होने की शिकायत की गई थी, जिसके चलते उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था। यह निलंबन पूरे तीन वर्षों तक चला, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और पेशेवर जीवन प्रभावित हुआ।

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो न्यायालय ने शिकायत की गहराई से जांच कराई। साक्ष्यों और तर्कों को सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से शिकायत को निराधार और फर्जी करार दिया। कोर्ट के आदेश में कहा गया कि सूर्यकांत कश्यप की नियुक्ति नियमों के तहत की गई थी और उन पर लगाया गया फर्जी नियुक्ति का आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद था।

न्याय मिलने के बाद सूर्यकांत कश्यप की प्रतिक्रिया
कोर्ट के इस फैसले के बाद सूर्यकांत कश्यप ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, "सत्य को दबाया जा सकता है, लेकिन मिटाया नहीं जा सकता। मैंने हमेशा सत्य के मार्ग पर विश्वास रखा और आज न्यायपालिका ने मेरे पक्ष में फैसला सुनाकर मेरे विश्वास को और मजबूत कर दिया।"

क्या होगा अब?
इस फैसले के बाद अब शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार बिना ठोस सबूतों के किसी कर्मचारी को तीन साल तक निलंबित कैसे रखा गया? कोर्ट के आदेश के बाद संभावना जताई जा रही है कि सूर्यकांत को इस गलत फैसले के लिए मुआवजा भी मिल सकता है।

फैसले से मचा हड़कंप
हाईकोर्ट के इस आदेश ने शिक्षा विभाग में हलचल मचा दी है। जिन लोगों ने सूर्यकांत कश्यप के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई थी, उनकी भूमिका की भी जांच की जा सकती है। यह मामला अन्य शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए भी एक मिसाल बन गया है कि झूठे आरोपों के आगे झुकने की जरूरत नहीं है, बल्कि न्याय की लड़ाई लड़नी चाहिए।

अब देखने वाली बात यह होगी कि शिक्षा विभाग इस मामले में क्या कदम उठाता है और सूर्यकांत कश्यप को न्याय के साथ सम्मान भी वापस मिल पाता है या नहीं!