जीवन में अनुकूलता चाहिए तो प्रतिकूलता में आंनद में रहो : मनीष सागर महाराज

दिशा सही होगी तो दशा अपने आप सुधर जाएगी
रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में गुरुवार को चातुर्मासिक प्रचवनमाला में परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि अपना आनंद लूटना मत छोड़ो। प्रतिकूलता में आनंद में रहो अपने आप अनुकूलता आएगी। पाप कर्म का उदय आए तो सकारात्मक पुरुषार्थ मत छोड़ो। पाप कर्म थोड़े समय का मेहमान है। हमेशा शांत रहो और धैर्य रखो। मन की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है। वर्तमान शांति को कभी नहीं खोना है। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में विवेक रखना चाहिए। अशांत मन में धर्म न छूटे। पाप कर्म का उदय तब तक आपकी शांति को छीन नहीं सकता जब तक आप शांत हो।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि बिना विवेक के जीवन होगा तो पतन के गर्त में गिरोगे। जब जब आप संयम की राह में बढ़ेंगे तो हो सकता है गति धीमी रहे। कठिनाई महसूस हो। मन, तन व व्यवस्थाएं थोड़ी दिक्कत देगी। आपका आदर्श,नियम कायदे, आपको संबल देंगे। आत्मविश्वास होता तो कुछ मुश्किल नहीं होगा। हमेशा संयम से प्रेम करो। जीवन में आनंद ही आएगा।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संयम का अर्थ है खुद पर कंट्रोल। यम अर्थात विश्राम। स्वयं पर विश्राम रखता है वह आनंद में रहता है। हमेशा शांत और सुखी रहता है। एक पक्ष बहुत बोले जा रहा है और दूसरा पक्ष शांत रहे तो बात बिगड़ेगी नहीं। क्रोध करने वाले की शक्ति अधिक खपती है। शांत रहने वालों को सिर्फ धैर्य चाहिए। अधिक क्रोधी के सामने यदि कुछ कह दो तो वह उत्साह में आकर चिल्लाने लगता है। जबकि शांत व्यक्ति सामने वाले के क्रोध को भी शांत करने का गुण रखता है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संयम का अर्थ केवल दीक्षा लेना नहीं है। संयम का अर्थ है अपनी सीमा में रहना। व्यक्ति को हमेशा पता होना चाहिए कि मेरा पड़ाव क्या है। साथ ही पता रहना चाहिए कि मेरा कर्तव्य क्या है। जो व्यक्ति अपने सीमा में रहेगा। अपने कर्तव्यपथ पर धैर्य पूर्वक अडिग रहेगा, वह सदा सुखी रहेगा।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि समझदार व्यक्ति वही होता है जो अपने अतीत से सबक ले और वर्तमान को अच्छा बनाए। इससे भविष्य सुधर जाएगा। ना समझ व्यक्ति अपने अतीत का दोषारोपण किसी और पर करता है। भविष्य की कल्पना इतनी सुनहरी बनाता है कि वर्तमान में कुछ करने की आवश्यकता नहीं।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि ना समझ व्यक्ति को ऐसा लगता है कि मेरा भविष्य सुधरने वाला है। यह सोच जिसकी रहती है वह सिर्फ और सिर्फ तनाव में जीता है। ऐसा व्यक्ति अतीत की पुरुषार्थ की कमजोरी को नहीं देखता। भविष्य के पुण्य के प्रति बड़ा आशान्वित होता है। जो वर्तमान में पुरुषार्थ नहीं करता और भविष्य को केवल सुनहरा देखता है, यह ना समझ व्यक्ति की पहचान होती है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि दिशा का अर्थ होता है आपके आदर्श, विचारधारा और सिद्धांत। ये सही होंगे तो दशा अपने आप ठीक हो जाएगी। जो सही है उसे सही और जो गलत है उसे गलत मानने का निर्णय लो। ऐसा करोगे तो सही और गलत का फैसला आप कर लोगे। फिर आप संयम में रहोगे। संयम में जो जीता है वह सदा आनंद में रहता है।
आचार्य भगवंत ने कहा कि नशे को त्यागने में बड़ा आत्मविश्वास चाहिए। नशा छोड़ने के लिए बस धैर्य रखना पड़ेगा। नशे का दास नहीं बनाना है। स्वयं को खुद ही बदलना पड़ेगा। यदि ठान लिया तो बदल जाओगे। मनोबल बढ़कर नशा छोड़ो और मुंह फेर कर मत देखो। फायदा देखोगे तो कदम बढ़ेंगे और नुकसान देखोगे तो कम घटेंगे। अच्छी चीजों में फायदा देखो। केवल सुनाना प्रवचन नहीं है। सुनकर सुधरने का प्रयास करें। जरुर सफलता मिलेगी।