समर्थ पुरुष में दोष दुख का कारण नहीं होता है : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

समर्थ पुरुष में दोष दुख का कारण नहीं होता है : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर में चातुर्मास प्रवचन माला के क्रम को गति देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ ने शिव पुराण की कथा को विस्तृत करते हुए बताया कि "समर्थ पुरुष में दोष दुख का कारण नहीं होताहै"। असमर्थ पुरुष में ही दोष दुःखदायक होता है। सज्जनों में दोष जाकर गुण ही बन जाते हैं जो समर्थवान व्यक्ति होता है दोष उस पर प्रभाव नहीं डालते है। सूर्य अग्नि और गंगा समर्थवान है इसलिए दोष इन पर प्रभाव नहीं डाल पाते है,अपितु इनमें जाकर दोष गुण बन जाते हैं।

सूर्य अग्नि और गंगा के दृष्टांत से यही सिद्ध होता है कि की सामर्थवान व्यक्ति को दोष नहीं लगता है। भगवान शिव समर्थ हैं, साक्षात परमात्मा है। उनके साथ ही पार्वती का विवाह होना चाहिए क्योंकि सारे लक्षण पार्वती के शिव पर घटित होते हैं अतः यह तुम्हारी पुत्री साक्षात शिवा की अवतार है। पूर्व जन्म में ही दक्ष की पुत्री कहलाई थी। आपकी तपस्या से एवं आपके वंश को पवित्र करने के लिए पुनः आपके कुल में उत्पन्न हुई है।

यह सदा सर्वदा से भगवान शिव की ही अर्धांगिनी रही है। अतः हिमालय तुमको किसी भी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए अपितु मन ही मन प्रसन्न होना चाहिए। उक्ताशय का उपदेश नारद जी पार्वती के लक्षणों को देखकर हिमालय से व्यक्त कर रहे।
आज के सत्संग में यजमान के रूप में पुहुपराम साहू मनोरमा साहू एवं उनके परिवार  के लोग उपस्थित थे। कर्मकांड का भाग श्री शंकराचार्य आश्रम के वैदिक विद्वानों ने संपन्न कराया