धर्मसत्ता का झटका कब लग जाए,कोई नहीं जानता : साध्वी हंसकीर्ति श्रीजी

रायपुर। दादाबाड़ी में आत्मोत्थान चातुर्मास 2025 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला के दौरान शुक्रवार को परम पूज्य श्री हंसकीर्ति श्रीजी म.सा. ने कहा कि आज के समय में हम शरीर की देखभाल पर तो पूरा ध्यान देते हैं लेकिन आत्मा की चिंता करना भूल जाते हैं। शरीर को पुष्ट करने के लिए दिनभर मेहनत करते हैं, पौष्टिक आहार देते हैं, और जब मैल जम जाए तो साबुन से धो भी देते हैं। लेकिन जिस उद्देश्य से यह शरीर मिला है, उसकी ओर ध्यान नहीं देते। जब तक शरीर स्वस्थ है, प्रभु की आराधना कर लेनी चाहिए।
साध्वीजी कहती हैं कि अगर आप अस्पताल में भर्ती हो जाएं और शरीर में जगह-जगह पाइप लगे हों, उस हालत में कोई आपको धार्मिक ग्रंथ पढ़कर सुनाए तो वह मन को अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि आपने कभी सत्संग सुना ही नहीं। इसीलिए जीवन में धर्म और संस्कारों की नींव बचपन से ही डालनी चाहिए।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आपने गन्ना रस निकालने वाली मशीन देखी होगी – उसमें गन्ना डालने पर एक ओर सूखा भाग निकलता है और दूसरी ओर रस की धार। लेकिन रस पूरी तरह निकालने के लिए गन्ने को बार-बार मशीन में डाला जाता है, ताकि एक-एक बूंद भी व्यर्थ न जाए। गन्ने का सूखा भाग भी बेकार नहीं जाता, उसे पेपर बनाने वाली कंपनियों को दे दिया जाता है। ठीक वैसे ही जीवन का एक-एक पल मूल्यवान है, उसका सार्थक उपयोग होना चाहिए।
एक प्रेरक प्रसंग बताते हुए उन्होंने कहा – एक युवक बहुत तेजी से जा रहा था, रास्ते में एक साधु ने पूछा कि इतनी जल्दी कहां जा रहे हो? युवक ने जवाब दिया – बीमा कराने, ताकि समय रहते कर लूं तो फायदा होगा। साधु ने पूछा – क्या धर्म करते हो? युवक ने कहा – धर्म तो बुढ़ापे में होता है, अभी बहुत समय है। इस पर साधु ने कहा कि ये सोच ही सबसे बड़ी भूल है।
उन्होंने एक और उदाहरण दिया – अगर आप एक महीने के लिए घर छोड़ दें, और जब लौटें तो घर में धूल व जाले भरे मिलें, तो क्या आप कामवाली का इंतजार करेंगे? नहीं, आप तुरंत खुद सफाई में जुट जाएंगे। एक झटके में सब साफ हो जाएगा। लेकिन सोचिए, उस मकड़ी ने कितनी मेहनत से वह जाला बुना था! ठीक वैसे ही जब धर्मसत्ता का झटका पड़ता है, तो करोड़पति से रोडपति बनने में देर नहीं लगती।
साध्वीजी ने पूछा कि आप अपनी संपत्ति के मालिक हैं या चौकीदार? अपनी तिजोरी को बार-बार देखकर खुश होते हैं, लेकिन वह धन भी मन ही मन सोचता है – “अच्छा चौकीदार मिला है।”
आज की स्थिति यह है कि व्यक्ति धन के मोह में इतना डूब चुका है कि उसकी सोच बन गई है – "धन आए मुट्ठी में और सब जाए भट्ठी में।" लेकिन यह जानना जरूरी है कि न शरीर स्थायी है, न संपत्ति। इस जीवन और धन का सदुपयोग करते हुए धर्म की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, तभी जीवन सच्चे अर्थों में सफल हो सकता है।
आत्मोत्थान चातुर्मास समिति 2025 के अध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि दादाबाड़ी में सुबह 8.45 से 9.45 बजे साध्वीजी का प्रवचन होगा। आप सभी से निवेदन है कि जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।