छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में अनोखी दशहरा परंपरा: मिट्टी के रावण की नाभि से निकालते हैं अमृत, लगाते हैं शुभ तिलक
कोंडागांव। दशहरा का त्योहार पूरे देश में रावण दहन की धूम से रोशन होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के भूमका और हिर्री गांवों में यह उत्सव एक अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। यहां रावण को आग के हवाले करने के बजाय मिट्टी से विशालकाय प्रतिमा बनाकर उसका वध किया जाता है, और सबसे खास है नाभि से निकलने वाले 'अमृत' का तिलक लगाने की सदियों पुरानी रस्म। दूर-दूर से सैलानी इस दृश्य को निहारने आते हैं, जो आस्था और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।
गांववासी मिलकर मिट्टी का भव्य रावण तैयार करते हैं। रामलीला का मंचन समाप्त होते ही वध की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें रावण की नाभि से कृत्रिम 'रक्त' या 'अमृत' बहाया जाता है। ग्रामीण इसे माथे पर लगाकर खुद को पवित्र घोषित करते हैं। उनके अनुसार, यह तिलक समृद्धि, सुख-शांति और असीम शक्ति का आशीर्वाद लाता है। दादा-परदादा के काल से चली आ रही यह परंपरा रावण के ऐतिहासिक चरित्र से जुड़ी नहीं, बल्कि स्थानीय मान्यताओं की देन है।
जैसे-जैसे इस रिवाज की ख्याति बढ़ रही है, वैसे-वैसे आसपास के गांवों और जिलों से भीड़ उमड़ने लगी है। कोंडागांव का यह दशहरा जलते रावण की लपटों से नहीं, बल्कि मिट्टी के रावण से अमृत तिलक की मधुर परंपरा से चमकता है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि गांव की सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूती से थामे हुए है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी उत्साह के साथ निभाई जा रही है।

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