पितरों की तृप्ति के लिए विवाह आवश्यक है : इंदुभवानंद महाराज

पितरों की तृप्ति के लिए विवाह आवश्यक है : इंदुभवानंद महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर में चल रहे चातुर्मास्य प्रवचनमाला के क्रम को गति देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज ने भागवत कथा सत्संग के प्रसंग में बताया कि सारी सृष्टि को कठपुतली की तरह है ईश्वर नचाता है। रुक्मणी मंगल के प्रसंग को विस्तार देते हुए महाराज ने बताया कि बड़े-बड़े सभी राजा भाग खड़े हुए शिशुपाल के पास जरासंध ने आकर कहा कि आपको उदास नहीं होना चाहिए। यह रुक्मणी साक्षात महालक्ष्मी का स्वरूप है और श्री कृष्ण साक्षात परब्रह्म परमात्मा है यह मैं अपना अनुभव तुमसे व्यक्त कर रहा हूं। मैंने 17 बार उनके हाथों से पराजय स्वीकार की है। केवल एक बार ही मैं उनकी ही कृपा से जीत सका हूं।

इस तरह जब हमारा काल अनुकूल होगा तब हम उनको जीतेंगे तुम चिंता मत करो। पत्नी, धन और विद्या पूर्व जन्म से अर्जित ही प्राप्त होती है। इसलिए विवाह का संबंध पूर्व जन्म से ही होता है। भारतीय संस्कृति में विवाह भोग की तृप्ति के लिए नहीं होता है अपितु पितृगणों की मुक्ति के लिए ही विवाह किया जाता है। विवाह के द्वारा संतान प्राप्त करके भारतीय सनातन परंपरा पितृऋण से मुक्त करने का उपदेश देती है। जब तक पितरों से जीव मुक्त नहीं होता है तब तक ऋषियों की कृपा तथा देवताओं की कृपा भी उसे प्राप्त नहीं होती है पितरों की कृपा से ही देवता और ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है अतः पितरों को अवश्य ही तर्पण श्राद्ध और प्रदान करना चाहिए। गया जाने के बाद भी  पितरों का श्राद्ध व तर्पण बंद नहीं करना चाहिए पितरों के अतृप्त होने से परिवार की शांति और सुख नष्ट हो जाता है। व्यक्ति को पग पग पर कष्ट और बाधाएं प्राप्त होती है। बड़ी श्रद्धा के साथ सामर्थानुकूल श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करना चाहिए।