"प्रकृति संतुलन के प्रहरी हैं नाग – नागपञ्चमी पर डॉ. अलका यादव की भावपूर्ण व्याख्या"

"प्रकृति संतुलन के प्रहरी हैं नाग – नागपञ्चमी पर डॉ. अलका यादव की भावपूर्ण व्याख्या"

जांजगीर से राजेश राठौर की रिपोर्ट 
जांजगीर। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व नागपञ्चमी केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण का गूढ़ संदेश भी है। यह विचार व्यक्त किए हैं प्रख्यात लेखिका एवं चिंतक डॉ. अलका यादव ने।

उन्होंने कहा कि सर्प, विशेषकर नाग, केवल पौराणिक प्रतीकों में ही नहीं, बल्कि वातावरणीय संतुलन के वैज्ञानिक कारकों के रूप में भी महत्वपूर्ण हैं। वर्षा ऋतु में धरती से निकलने वाली विषैली गैसों को नाग आत्मसात कर लेते हैं, जिससे पर्यावरण की रक्षा होती है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने नागों की पूजा को सामाजिक आस्था से जोड़ा, ताकि मानव उनकी रक्षा करे न कि उनका संहार।

डॉ. यादव के अनुसार, नाग केवल भय का प्रतीक नहीं, बल्कि श्रद्धा और संरक्षण का विषय हैं। वासुकि, शेषनाग जैसे देवता स्वरूप नागों का उल्लेख हमारे पौराणिक ग्रंथों में विष्णु और शिव जैसे देवों के साथ किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि नागपञ्चमी पर्व हमारे सांस्कृतिक दृष्टिकोण और प्रकृति-सम्बंधी जिम्मेदारी का प्रतीक है।

बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे अंचलों में नाग से संबंधित परंपराएं गहराई से जुड़ी हुई हैं। बंगाल में नागों की अधिष्ठात्री देवी मनसा देवी की पूजा होती है। डॉ. यादव ने यह विचार भी साझा किया कि "कभी-कभी मिथक वह कह जाते हैं जो बुद्धि नहीं कह पाती। वे हमारी प्रेरणा के अदृश्य स्रोत होते हैं।"

डॉ. अलका यादव का यह दृष्टिकोण नागपञ्चमी जैसे पर्व को मात्र धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रकृति के संवेदनशील प्रहरियों के प्रति आभार के रूप में देखने की प्रेरणा