हिरण्याक्ष लोभ की संग्रह वृत्ति का प्रतीक : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज
रायपुर। खमतराई रायपुर में आयोजित श्रीमद्भागवत की अमृतमयी कथा को विस्तार देते हुए श्री शंकराचार्य आश्रम के प्रमुख डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज ने बताया कि हिरण्याक्ष लोभ की संग्रह वृत्ति का प्रतीक है। श्रीमद् भागवत में हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु की कथा लोभ की वृत्ति के रूप में प्रस्तुत की गई है। "हिरण्य" अर्थात् सोना अक्ष अर्थात् आंख जिसकी सोने में नजर लगी हो, संग्रह में जिसकी प्रवृत्ति हो संग्रह को ही जो प्रमुख समझे वह हिरण्याक्ष। और "हिरण्य" अर्थात सोना "कशिपु" अर्थात शैया जो सोने की शैया पर शयन करें, अर्थात भोग ही भोग करें वह हिरण्यकशिपु। लोभ की दो वृत्तियां होती हैं एक भोगवृत्ति और एक संग्रहवृत्ति। भोग वृत्ति वाला व्यक्ति सोने की शैयापर शयन करता है,भोग विलास करता है। वह हिरण्यकशिपु कहलाता है। संग्रहवृत्ति वाला दूसरों के धन पर आंख लगाए रहता है, उसे लूटपाट कर लाकर अपने घर में भरता है वह स्वयं भोग विलास नहीं करता है वह संग्रह वृद्धि का प्रतीक हिरण्याक्ष कहलाता है।

हिरण्याक्ष दिग्विजय कर धन लाकर राजप्रासाद में भरता था उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु छककर भोग विलास करता था। लोभ की कोई सीमा नहीं होती है वह प्रतिदिन बढ़ता ही रहता है इसलिए हमारे शास्त्र में लिखा है *जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई* । लोभ का विस्तार स्वर्ग तक ही नहीं अपितु ब्रह्म लोग तक माना जाता है सूर्य चंद्र भी उसके नीचे रहते हैं इस प्रकार हिरण्यकशिपु है लोभ की भोग वृत्ति का प्रतीक और हिरण्याक्ष है लोभ की संग्रह वृत्ति का प्रतीक। हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपु का शरीर फौलादी था वज्र जैसा था लोभ भी फौलादी होता है न काटे कटता है और ना मारे जल्दी मरता है लोभ मरते दम तक प्राणी का पीछा नहीं छोड़ता है।

आगे कथा के विस्तार में महाराज श्री ने बताया कि दक्ष की पुत्री दिति ने धर्म मर्यादा का विचार किए बिना कश्यपजी से संतान प्राप्ति की इच्छा की। कश्यप जी ने समझाया कि प्रत्येक पुरुष का धर्म है कि अपनी स्त्री की इच्छा को पूर्ण करें क्योंकि स्त्री के द्वारा ही उसको धर्म अर्थ काम की सिद्धि प्राप्त होती है। पत्नी के सहारे ही मनुष्य दुःख से पार हो जाता है। पति के धर्म संपादन में पत्नी बहुत सहायक होती है पत्नी शरीर का आधा अंग मानी जाती है। अतः प्रत्येक पुरुष का धर्म होता है कि वह अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ण करें किंतु देश, काल एवं समय का विचार करना चाहिए अन्यथा अधार्मिक, अशिष्ट संतान उत्पन्न होती है।
कथा के पूर्व यजमान सुदर्शन साहू दुल्ली बाई, गज्जू साहू, गोदावरी साहू मान बाई साहू निरंजन साहू, मेनका साहू तथा परिवार की अन्य सदस्यों ने भागवत भगवान की पोथी की आरती की तथा व्यास पूजन किया।

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