कांटों के झूले पर झूलकर काछनदेवी देगी दशहरा संपन्नता की अनुमति

कांटों के झूले पर झूलकर काछनदेवी  देगी दशहरा संपन्नता की अनुमति

जगदलपुर (चैनल इंडिया)। बस्तर दशहरा में इस वर्ष काछन गादी पूजा विधान आज संपन्न होगा। परंपरानुसार पनका जाति की कुंवारी कन्या बेल के कांटे पर काछनदेवी के रूप में झूलती हुई राजपरिवार के सदस्यों को बस्तर दशहरा के निविघ्र संपन्नता की अनुमति प्रदान करती है।   पनका जाति की कुंवारी कन्या पीहू को आमंत्रित किया गया है। पीहू लगातार तीसरी बार अपने में काछन देवी को धारण करेंगी।  काछन देवी बर्नी नाबालिग कन्या को देवी स्वरूपा मानकर बेल के कांटों के झूले पर झुलाया जाता है। बस्तर दशहरा पर्व के दौरान भंगाराम चौक स्थित काछन गुड़ी में एक कन्या को काछन देवी के रूप में श्रृंगारित कर कांटे के झूले में झुलाया जाता है। इस वर्ष काछन पूजा विधान आज शाम को संपन्न होगा। रियासत कालीन एतिहासिक बस्तर दशहरा हरियाली आमावाश्या तिथि पर पाट जात्रा पूजा विधान के साथ इसकी शुरूआत हो जाती है। बस्तर दशहरा के निविघ्र संपन्नता की अनुमति बस्तर राजपरिवार को मिलने के बाद नवरात्र के कलश स्थापना, जोगी बिठाई रस्म एवं बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण रथ परिचालन प्रारंभ हो जायेगा। इसके लिए काछनगुड़ी में एक सप्ताह पहले से इसकी प्रक्रिया पूरा किया जा रहा है। काछिनदेवी से स्वीकृति मिलने पर ही बस्तर दशहरा धूम-धाम के साथ आरंभ हो जायेगा है।  काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। काछिन देवी की गद्दी कांटेदार होती है। कांटेदार झुले की गद्दी पर काछिनदेवी विराजित होती है। काछिनदेवी का रण देवी भी कहते है। काछिनदेवी बस्तर अंचल के मिरगानों (हरिजन)की देवी है। बस्तर महाराजा के द्वारा बस्तर दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।