भक्ति ज्ञान वैराग्य से विवेक जाग्रत होता है : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

भक्ति ज्ञान वैराग्य से विवेक जाग्रत होता है : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

रायपुर। गज्जू साहू जोन अध्यक्ष क्रमांक 1 खमतराई के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत सप्ताह में श्री शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर से पधारे यतिप्रवर स्वामी 108 दण्डीस्वामी इन्दुभवानंद तीर्थ महाराज ने बताया कि ज्ञान वैराग्य और भक्ति से विवेक की वृद्धि होती है। विवेक के बढ़ने से मोह का नाश हो जाता है और मानव जीवन सफल हो जाता है। इस मानव शरीर की देवता भी अपेक्षा करते हैं। भारतवर्ष में जिन भाग्यशाली लोगों को मानव का शरीर प्राप्त हुआ है उनका जीवन तभी सफल है जब वह भगवान की दिव्य अमृतमयी कथा श्रवण करते हैं।

यदि भगवान की कथा श्रवण नहीं करते हैं तो उनका जीवन निष्फल है। क्या करेंगे भागवत के बिना यह शरीर रखकर ? यह शरीर हड्डी के खम्बो पर टिका हुआ है। स्नायु से बना हुआ है। मान्सलेपित है। चर्मवानद्ध है। दुर्गंध से युक्त है। मूत्र पुरीष का पात्र है। इसका नाम शरीर है जो नित्यप्रति क्षीण होता है उसी को शरीर कहा जाता है। अंत में यह शरीर सड़ जाएगा। इस इस शरीर को भारत भूमि में प्राप्त करके जो भगवान की सेवा में इसको नहीं लगाते हैं उनका जन्म निरर्थक है।
प्रातः काल के रांधे (बनाया हुआ भोजन) का सायंकाल  सड़ जाता है। इस सड़े भोजन से इस शरीर का निर्माण होता है जब इसका कारण ही नित्य नहीं है तब उससे उत्पन्न होने वाला कार्य कैसे नित्य हो सकता है। अतः इस अनित्य शरीर से नित्य परमात्मा को प्राप्त कर लेना ही जीवन की सार्थकता है। 

आगे उन्होंने श्रीमद् भागवत के मंगलाचरण की व्याख्या व्यासजी का असंतोष भगवान के अवतार  का प्रसंग,द्रोपती कुंती व उत्तरा की स्तुति आदि प्रसंगों पर विस्तृत व्याख्यान करते हुए उत्तर को भगवान के चार भक्तों की श्रेणी में आर्त्तभक्ति की श्रेणी में सिद्ध किया। 

कथा के पूर्व यजमान सुदर्शन साहू,डुल्ली बाई साहू,गज्जू साहू, गोदावरी साहू,निरंजन, मेनका साहू, मोनिका, पायल ,पलक यामिनी आदि श्रोताओं ने पोथी का पूजन करके आरती संपन्न की।