10 जुलाई को मनाएं गुरुपूर्णिमा महोत्सव: डॉ. इंदुभवानंद महाराज

रायपुर। शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला के प्रमुख दांडी स्वामी डॉक्टर इंदुभवानंद महाराज ने गुरु पूर्णिमा की जानकारी दी है। उन्होंने बताया है कि गुरु पूर्णिमा का महोत्सव आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। जब पूर्णिमा प्रारंभ होती है तो इस दिन व्यास का पूजन होता है,अपने गुरुओं का पूजन भी हम करते हैं और गुरु परंपरा का पूजन भी करते हैं। हम लोग यह मानते हैं कि भगवान ही व्यक्ति को मुक्त करने के लिए,ज्ञान देने के लिए गुरु के रूप में आता है। भागवत में भी इसी प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है। भगवान स्वयं उद्धव जी को कहते हैं कि आचार्य अर्थात गुरु,तुम मुझे ही गुरु समझो, कभी भी अपने गुरु की अवमानना नहीं करना चाहिए। जैसा मैं हूं,ऐसा गुरु महाराज का शरीर है,ऐसी बुद्धि नहीं रखना चाहिए। गुरु में कभी भी मनुष्य बुद्धि नहीं रखना चाहिए, मंत्र में अक्षर बुद्धि नहीं रखना चाहिए और देवता में पाषाण बुद्धि नहीं रखना चाहिए। जो गुरु को सामान्य व्यक्ति समझता है और मूर्ति में पत्थर का दर्शन करता है,मंत्र में अक्षर दर्शन करता है, उसका शीघ्र विनाश हो जाता है। इसलिए आचार्य भगवान कहते हैं कि मुझे ही तुम समझो। सभी देवता गुरु महाराज में निवास करते हैं। इसलिए एक दिन पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का महोत्सव मनाया जाता है।
महाराज जी ने बताया कि गुरु पूर्णिमा महोत्सव 9 जुलाई बुधवार को देर रात्रि में 1:05 बजे,अंग्रेजी की तारीख से विचार करेंगे तो 10 तारीख के अत्यंत प्रात:काल पूर्णिमा प्रारंभ हो जाएगी। दूसरे दिन अर्थात गुरुवार को 10 जुलाई को यह रात में 1:49 बजे तक रहेगी। अतः गुरु पूर्णिमा महोत्सव गुरुवार 10 जुलाई को ही मनाया जाएगा। इस बार स्नान, दान और व्रत की तीनों पूर्णिमा एक है, इसलिए इसी दिन को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।
महाराज जी ने बताया कि पूर्णिमा में जो चातुर्मास व्रत करते वे चातुर्मास व्रत का संकल्प लेते हैं। भगवान विष्णु इस समय शयन करने लगते हैं। इस दौरान चातुर्मास व्रत सन्यासी करते हैं। यह सन्यासियों का बहुत बड़ा यज्ञ माना जाता है। इसको ज्ञान सत्र भी कहा गया है। चार महीना एकांत में बैठ कर यह व्रत किया जाता है। वैसे संन्यासी महात्मा भ्रमण करते रहते हैं,उन्हें सदा घूमते रहना चाहिए क्योंकि एक स्थान में रुकने में और सारे दोषों की संभावना होती है। जैसे पानी रुक जाता है तो उपयोग के लिए नहीं रहता है, उसी प्रकार से रमता जोगी बहता पानी। इस दृष्टि से 8 महीना सन्यासी भ्रमण करते हैं। केवल चार महीना में एक स्थान में विराजमान होते हैं और एक ज्ञान सत्र के नाम से इसको जाना जाता है और यह चातुर्मास व्रत में स्वाध्याय करते हैं तो संन्यासियों के लिए यह चातुर्मास व्रत है और सामान्य लोग भी जो व्यक्ति चाहे कर सकता है।
महाराज जी ने कहा कि इस पूर्णिमा के दिन कुछ लोग वायु की परीक्षा करते हैं। कुछ लोग अपने पुण्यों की भी परीक्षा करते हैं। चतुर्दशी की शाम को सभी प्रकार का धान तोल कर अलग-अलग रख लेते हैं। दूसरे दिन भी तोलते हैं,यदि वजन में कम हो गया तो पुण्य कम होंगे और वजन में बढ़ गया तो पुण्य बढ़ेंगे और यदि वजन बराबर रहा तो पुण्य क्षीण नहीं होंगे। इस प्रकार एक वर्ष का अनुमान लोग करते हैं। इसलिए यह पूर्णिमा बहुत महत्वपूर्ण है। सभी को अपने-अपने गुरु महाराजों का पूजन करना चाहिए।