मद्रास हाईकोर्ट का फैसला: अब मुस्लिम परिवार भी अपना सकते हैं गोद लेने की प्रक्रिया

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला: अब मुस्लिम परिवार भी अपना सकते हैं गोद लेने की प्रक्रिया

चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी बच्चे को गोद ले सकते हैं और मुस्लिम पर्सनल लॉ इसमें कोई बाधा नहीं डाल सकता। हालांकि, गोद लेने की प्रक्रिया केवल एक दस्तावेज़ (एडॉप्शन डीड) बनाकर और रजिस्ट्रेशन कराने तक सीमित नहीं रहेगी, यह जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट, 2015 और एडॉप्शन रेगुलेशंस, 2022 के सख्त प्रावधानों का पालन करके ही पूरी की जानी होगी।

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यदि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और किसी पर्सनल लॉ के बीच टकराव हो, तो JJ एक्ट ही सर्वोच्च होगा। इससे गोद लिए गए बच्चे को जन्मजात संतान के समान सभी कानूनी अधिकार जैसे उत्तराधिकार, संपत्ति और देखभाल मिलेंगे। यह फैसला मुस्लिम व्यक्ति के. हीराजॉन की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। हीराजॉन, जो संतानहीन हैं, उनके भाई के निधन के बाद विधवा भाभी ने अपने आठ वर्षीय बेटे को गोद देने की सहमति दी। दोनों पक्षों के समझौते से एडॉप्शन डीड तैयार हुई, लेकिन रजिस्ट्रेशन अधिकारी ने इसे अस्वीकार कर दिया, दावा करते हुए कि इस्लाम में गोद लेना मान्य नहीं।

हीराजॉन ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने माना कि इस्लाम में गोद लेने की परंपरा न होने के बावजूद JJ एक्ट हर धर्म के व्यक्ति को गोद लेने का अधिकार देता है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के शबनम हाशमी बनाम भारत सरकार मामले का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि मुसलमान और ईसाई समुदाय जिनके धर्म में गोद लेना धार्मिक रूप से स्वीकृत नहीं भी JJ एक्ट के तहत गोद ले सकते हैं।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिए कि वे जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPO) और जिला मजिस्ट्रेट (DM) के समक्ष आवेदन करें। DCPO को आवेदन पोर्टल पर अपलोड होने के तीन सप्ताह में सत्यापन पूरा करना होगा, जबकि DM को निर्णय तीन सप्ताह में देना होगा। यह फैसला अनाथ और असहाय बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करते हुए धार्मिक बाधाओं को दूर करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।