"बस्तर में बेर के पेड़ को नमन करो इसी ने प्रभु श्रीराम को तृप्त किया", बस्तर के राम में बोले डॉ. कुमार विश्वास

"बस्तर में बेर के पेड़ को नमन करो इसी ने प्रभु श्रीराम को तृप्त किया", बस्तर के राम में बोले डॉ. कुमार विश्वास

दंतेवाड़ा (चैनल इंडिया)। जिला मुख्यालय में बस्तर पंडुम  महोत्सव के आयोजन में प्रख्यात कवि एवं श्रीराम कथा वाचक डॉ. कुमार विश्वास के द्वारा ’’बस्तर के राम’’ पर आधारित कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि दंतेवाड़ा आने के बाद मैं मां दंतेश्वरी के मंदिर जाकर मां के चरणों में लेटा लेकिन मैंने अपने लिए उनसे कुछ नहीं मांगा। मेरे मुख से कुछ निकला ही नहीं। अब इस परिसर से मैं यही मुराद मांगता हूं कि मुझे इतना कौशल, सामथ्र्य, इतनी शक्ति दें कि वामपंथ पर जाने वाली पीढ़ी को मैं रामपथ पर ला सकूं। 
 डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि हमें कैकई माता का भी आभारी होना चाहिए कि उनके कारण भगवान राम के चरण इस दंडकारण्य में पड़े। कई बार शाप वरदान बन जाता है, कैकई का हठ दंडकारण्य और जन सामान्य के लिए वरदान बन गया। श्रीराम ने दंडकारण्य बस्तर आकर एक काम और किया। वनवासी और नगरीय सभ्यता का भेद खत्म कर दिया। यहां बस्तर आकर उन्होंने भील, कोल, किरात को गले लगाया। अगर चित्रकूट से राम लौट जाते तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं मिलते। श्रीराम को जगतपति और मर्यादा पुरुषोत्तम इसी बस्तर दंडकारण्य की मिट्टी ने बनाया। उन्होंने कहा कि जिस राम ने माता कौशल्या के बाद अपनी मां के रूप में देखा, वह इसी बस्तर से शबरी मां थी। बस्तर के किसी जंगल से गुजरो, तो किसी भी बेर के पेड़ को देखकर वट वृक्ष की तरह नमन करो, इसी ने श्रीराम को तृप्त किया।
 डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि दंडकारण्य यानी बस्तर के कण-कण में राम विराजे हैं। इंजरम यानी इंजे राम वत्तोर यानि राम यहां आए। रामेश्वरम के साथ ही इंजरम में भी भगवान राम ने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की है। उन्होने कहा कि बस्तर आना मेरा सौभाग्य है, भगवान राम के कदम इस क्षेत्र में पड़े थे, इसीलिए यहां नंगे पांव चलने पर भी कांटे नहीं चुभते। दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल में विराजे गणेश जी की कथा भी अद्भुत है। गीदम नाम गिद्धराज जटायु के आधार पर हुआ, पुराने समय मे यहां गिद्ध बड़ी संख्या में पाए जाते थे।