मेरे शहर में ये कैसी हवा चली है दोस्त...यहां की हर गली धुआं भरी है दोस्त...

मेरे शहर में ये कैसी हवा चली है दोस्त...यहां की हर गली धुआं भरी है दोस्त...

रायपुर। सुप्रसिद्ध साहित्यकार चित्तरंजन कर ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेंद्र रावल के कुछ गीतों और ग़ज़लों को संगीतबद्ध कर प्रस्तुत किया। मेरे एकाकी मन सतरंगी सपनों के भ्रांति भरे नातों में ढूँढ रहे अपनापन। टप टप करके बूँद बूँद कर झरते जीवन के पल पल। ओ गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाने वाली अब शैशव का अंत हो गया, आदि गीतों को मंत्रमुग्ध होकर देर शाम तक श्रोतागण सुनते रहे।


प्रज्ञा साहित्य समिति के तत्वावधान में ये कार्यक्रम संस्था के अध्यक्ष सुरेंद्र रावल के निवास पर आयोजित किया गया था। इस अवसर पर धर्मेंद्र रावल, पारुल रावल ऋचा रावल,  अशोक त्रिवेदी ,प्रज्ञा त्रिवेदी, अनुकृति,  माधुरी कर, नीलिमा मिश्र्, मंजुला श्रीवास्तव, नीता श्रीवास्तव, मीना शर्मा, अनिल श्रीवास्तव, गिरीश पंकज, सुरेश तिवारी, दिलीप वरवंडकर आदि उपस्थित थे। स्वर चित्तरंजन कर का और तबले पर सोनू विश्वकर्मा थे।