पितृ पक्ष में अपने पितरों का अवश्य करें श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान का बड़ा महत्व : डॉ. इंदुभवानंद महाराज

पितृ पक्ष में अपने पितरों का अवश्य करें श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान का बड़ा महत्व : डॉ. इंदुभवानंद महाराज

पितृ पक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से,2 अक्टूबर को समापन

रायपुर। शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर के प्रभारी स्वामी डॉक्टर इंदुभवानंद महाराज ने पितृ पक्ष की जानकारी दी।  महाराज जी ने बताया कि 18 सितंबर से 2 अक्टूबर तक पितरों का महान पर्व पितृ पक्ष है। इस दौरान हमें पितरों के निमित्त जल अर्पण और श्राद्ध करना चाहिए। यह भारतीय परंपरा का बड़ा आदर्श है। जब हम जन्म लेते हैं तो जन्म लेते ही हमें तीन ऋण प्राप्त हो जाते हैं। पहला देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण, इन तीन ऋण से व्यक्ति पूर्ण होकर अपने मन को अपने मोक्ष की ओर लगा सकता है। 

महाराज जी ने बताया कि हमारे ऊपर देवताओं का,ऋषियों का और पितरों का ऋण है। इन तीनों ऋणों से मुक्त होकर ही हम अपने मन को भगवान की ओर लगा सकते हैं। इन तीन ऋणों में पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण माना जाता है। पितरों के विश्वास पर ही देवता हम पर विश्वास करते हैं। पितरों के कारण ही ऋषि हम पर विश्वास करते हैं, इसलिए सबसे पहले हमें पितृ ऋण से मुक्त होना चाहिए। पितृ ऋण से मुक्त होने का सबसे उत्तम समय है महालय माना जाता है। पहला श्राद्ध, दूसरा तर्पण और पिंडदान प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। 

महाराज जी ने कहा कि जीवन की परी समाप्ति मृत्यु पर होती है, यह परम सत्य है। यह सभी लोगों को स्वीकार है और सभी प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। जब जीव शरीर से निकलता है तो उसे  आतिवाहिक शरीर प्राप्त होता है। कहते हैं बाल के अग्रभाग के सौ टुकड़े करने पर जितना एक हिस्सा होता है उतना शरीर जीवात्मा को प्राप्त होता है। इसी को आतिवाहिक शरीर बोलते हैं। यह केवल मनुष्य को ही प्राप्त होता है। जब उसके कुल के लोग उसको जल देते हैं,अन्न देते हैं उसी से तृप्त होता है, इसलिए जो पितर जिस तिथि में जाता है उस तिथि में उसे पुनः यमराज लाते हैं और उसके घर में वह विराजमान होता है। यदि आप उसको कुछ नहीं देते हैं तो वह श्राप देकर चला जाता है,इसलिए पितरों के निमित्त अवश्य हमको श्राद्ध, तर्पण और जल अर्पण करना चाहिए, पिंडदान करना चाहिए।