भारतीय संस्कृति के माला की एक मोती नुआखाई : विधायक पुरंदर मिश्रा

भारतीय संस्कृति के माला की एक मोती नुआखाई :  विधायक पुरंदर मिश्रा

रायपुर। नुआखाई पर्व पर रविवार को रायपुर उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा ने पत्रकारों से चर्चा की। उन्होंने कहा कि
ओड़िशा का प्रमुख लोक पर्व है। यह पर्व पश्चिम ओडिशा के सीमावर्ती छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, महासमुंद, रायगढ़, जशपुर, धमतरी सहित बस्तर संभाग के कुछ जिले भी इनमें शामिल है, जहां पड़ोसी राज्य की तरह उत्कल संस्कृति से जुड़े लाखों लोग इस पारंपरिक रीति रिवाज के साथ उत्साह से मनाते हैं। नुआखाई भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। नुआखाई का शाब्दिक अर्थ है नया खाना। खेतों में खड़ी नई फसल के स्वागत में यह प्रमुख मुख्य रूप से ओड़िसा के किसानों और खेतिहर श्रमिकों द्वारा मनाया जाने वाला पारंपरिक त्यौहार है,लेकिन समाज के सभी वर्ग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। लोग नुआखाई जुहार और भेंटघाट के लिए एक दूसरे के घर आते जाते हैं। पहले यह त्यौहार भादो के शुक्ल पक्ष में अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथियां के सुविधा अनुसार मनाया जाता था। गांव के मुख्य पुजारी इसके लिए तिथि और मुहूर्त तय करते थे लेकिन अब नुआखाई का दिन और समय संबलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी तय करते हैं। इस दिन गांव में लोग अपने ग्राम देवता या ग्राम देवी की पूजा करते हैं। नुआखाई के एक दिन पहले नई धान की बालियों के साथ चुड़ा, मूंग और परसा पत्तों और पूजा के फूल खरीद लिए जाते हैं। रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्थाई खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए धार्मिक विधि विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की। कालांतर में यह पश्चिम ओडिशा के एक लोक जीवन का एक प्रमुख पर्व बन गया। नए धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारंपरिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी नवान्हभोज यानी नए अन्य का भोज बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पहले आराध्य देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद नुआखाई का 
सह भोज होता है। नुआखाई त्यौहार के आगमन के पहले लोग अपने-अपने घरों की साफ सफाई और लिपाई पुताई करके नई फसल के रूप में देवी अन्नपूर्णा का स्वागत की तैयारी करते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए नए कपड़े खरीदे जाते हैं। उड़िया लोग एक दूसरे के परिवारों को नवान्ह भोज के आयोजन में स्नेह पूर्वक अनमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नए वस्त्रों में सज धज कर एक दूसरे को नुआखाई जोहर करने आते जाते हैं। गांव से लेकर शहरों तक खूब चहल पहल और खूब रौनक रहती है। सार्वजनिक आयोजनों में पश्चिम ओडिशा की लोक संस्कृति पर आधारित पारंपरिक लोक नृत्य की धूम रहती है। त्यौहार का उद्देश्य सामाजिक बंधन का जश्न मनाना और पारंपरिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह दिन किसानों द्वारा गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग इस दिन अपने मूल स्थान पर आते हैं और नए कपड़े पहनकर पूजा अर्चना करके विशेष भोजन तैयार करके त्यौहार मनाते हैं।