शहीद स्मारक में वीर क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी जी के 82वां बलिदान दिवस पर दी गई पुष्पांजलि

शहीद स्मारक में वीर क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी जी के 82वां बलिदान दिवस पर दी गई पुष्पांजलि

"शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का बस यही निशाँ होगा"
जगदलपुर से कृष्णा झा रिपोर्ट 
जगदलपुर। पूज्य सिन्धी पंचायत अध्यक्ष मनीष मूलचंदानी ने अमर शहीद हेमू कालाणी के चित्र पर झूलेलाल अंगवस्त्र और मालयार्पण कर दीप जलाकर पुष्पाजलि अर्पित किया। साथ ही सिन्धी समाज के सभी सदस्यों ने पुष्पाजलि अर्पित की साथ ही मौन धारण भी किया गया।

मनीष मूलचंदानी ने कहा वीर क्रांतिकारी अमर शहीद वीर हेमू कालाणी 21 जनवरी के ही दिन शहीद हुए थे उनकी शहादत निश्च़ित रुप से आज़ की युवा पीढ़ी को एक नई दिशा प्रदान करती हैं। समूचा भारत देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर उन महान क्रांतिकारियों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों का स्मरण करना भी बेहद ही ज़रुरी है, जिनकी वज़ह से हम आज़ खुले वातावरण में चैन से बैठकर आज़ादी की सांसें ले रहे हैं। भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए जिन वीर सपूतों ने अपना बलिदान दिया, ऐसे ही नायकों में एक थे क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी, जो मात्र 19 वर्ष की उम्र में शहीद हो गये थे। हेमू कालाणी (23 मार्च,1923-21 जनवरी,1943) सिंध के सक्खर (अब पाकिस्तान में) जन्मे थे। अमर शहीद हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सक्खर जिले में 23 मार्च 1923 को हुआ रहा। आपके पिता का नाम पेसूमल कालाणी एवं माता का नाम जेठीबाई कालाणी था। वर्ष 1942 में, पूरे अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में हेमू कालाणी ने अपनी किशोरावस्था में ही अपने साथियों के साथ मिलकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया तथा स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह किया। जब हेमू कालाणी की आयु मात्र सात वर्ष की थी, तब इस अल्प आयु में भारतमाता का तिरंगा लेकर अपने मित्रों के साथ अंग्रेजों की बस्ती में जाकर निर्भीक होकर भारतमाता को विदेशियों की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। भारत सरकार द्वारा 14 अक्टूबर 1983 को भारतीय डाक व तार विभाग द्वारा अमर शहीद हेमू कालाणी की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था। भारत के संसद भवन में 21 अगस्त 2003 को हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा किया गया था।

सिन्धी पंचायत सचिव हरेश नागवानी ने कहा अमर शहीद हेमू कालाणी को केवल 19 वर्ष की अल्प आयु में ही बर्बर अंग्रेज सरकार द्वारा फांसी दे दी गई थी। वे देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे, जब उनके 20वें जन्मदिन से दो महीने पहले ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होकर संपूर्ण सिंध प्रांत में तहलका मचा दिया था।
 
सुहिणी सोच की वरिष्ठ महिला चंद्रा देवी नवतानी ने कहा वीर क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी  को 21 जनवरी 1943 की सुबह अंग्रेजों द्वारा श्री हेमू कालाणी को फांसी दे दी गई। अंत में जब उन्हें फांसी दी गई उस समय रक्त़ की मात्रा और वजन बढ़ गया था। इतिहास हेमू कालाणी जैसे वीरों को हमेशा याद रखेगा जो इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डालकर फांसी के फंदे पर झूल गए जैसे फूलों की माला पहन रहे हों. समाज उपाध्यक्ष सुनील दंडवानी ने जारी विज्ञप्ति मे कहा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सिंध के सपूत हेमू कालानी का बहुत बड़ा याेगदान था। उनकी शहादत ने युवाओं में आजादी के विचार व देशप्रेम की भावना को और अधिक मजबूती प्रदान की। कालानी की शहादत से आजादी की भावना को बल मिला। पुष्पाजलि के इस महत्वपूर्ण आयोजन मे मनीष मूलचंदानी, संजय नत्थानी, सुनील दंडवानी, हरेश नागवानी, बृजलाल नागवानी, राजेश दुल्हानी, बसंत मेघानी, अनिल हासानी, सुरेश पोटानी, जीतू नागरानी, राजाराम नवतानी, राजकुमार आडवानी, आलोक हर्जपाल, डब्बू प्रेमचंदानी, प्रेम नवतानी, राम नरेश पांडे, चंद्रा देवी नवतानी, लक्ष्मी नवतानी, रेशमा भोजवानी व अन्य सभी समाज सदस्यों की उपस्तिथि रही।