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किसान सभा ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र!!


रायपुर(चैनल इंडिया)- ग्रीष्मकालीन धान को समर्थन मूल्य में खरीदी हेतु एजेंसी नियुक्त करने ,जंगली सूअर को वन्यप्राणी की श्रेणी से पृथक करने सहित सब्जी उत्पादक किसानों व मनरेगा मजदूरों के हित में किया है माँग
छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है जिसकी मुख्य कृषि उपज धान है। जो खरीफ एवं रबी दोनों सीजन में बोयी जाती है। वर्तमान में कोविड19 से बचाव के लिए दुनिया के अन्य देशों की भांति भारत मे 25 मार्च से लॉक डाउन किया गया है जिसका छत्तीसगढ़ की जनता शासन प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों का पालन कर रहे हैं। लॉक डाउन ने आम जन जीवन को प्रभावित किया है जिसका ज्यादा से ज्यादा प्रभाव कृषि क्षेत्र में हुआ है। सब्जी उत्पादक किसानों को उनके फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल पाने से उनको पशुओं को चराने मजबूर हुए हैं क्योंकि सब्जी मंडियों में जो दाम है उससे तोड़कर बाजार तक लाने की लागत भी वसूल नहीं हो पा रही है। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को नुकसान किया है जिससे लॉक डाउन के बाद के परिस्थिति में सब्जियों की कमी होने पर उनके दाम बढ़ जाएंगे। ऐसे समस्याओं से निपटने के लिए कृषि एवं बागवानी विभाग के माध्यम से जिला व ब्लॉक स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था किया जाये तथा लागत के आधार पर कीमत निर्धारित किया जाये ताकि सब्जी उत्पादक किसानों को उनके फसल का वाजिब दाम मिल जाये और साथ ही कम आपूर्ति के वक्त महंगाई पर नियंत्रण भी किया जा सके।
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के राज्य सचिव तेजराम विद्रोही ने अपने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि खरीफ सीजन धान को सरकार ने मार्कफेड के माध्यम से मोटा धान 1815 रु व पतला धान 1835 रु प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ समर्थन मूल्य में खरीदी किया है तथा छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तय 2500रु प्रति क्विंटल की अंतर की राशि अप्रैल माह की अंतिम सप्ताह या मई माह के प्रथम सप्ताह में देने की बात कह रहे हैं जिसका किसान सभा स्वागत करता हैं। साथ ही एक पहलू यह भी है कि बाकी के उपज को किसान कृषि उपज मंडियों में व्यापारियों को 1400रु से 1550 रु प्रति क्विंटल की दर पर बेचने को मजबूर हुए हैं। कृषि उपज मंडी अधिनियम की उपविधि अध्याय चार विपणन का नियंत्रण के 16- (2) अनुसार अधिनियम की धारा 36 (3) के प्रावधान के आधार पर किसानों को उनके उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है। इस प्रकार केन्द्र सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में करीब 400रु और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिए जा रहे मूल्य की तुलना में 1100 रु प्रति क्विंटल किसानों को नुकसान हो रहा है। अतः अनुरोध किया है कि ग्रीष्मकालीन धान की फसल खरीदी के लिए कृषि उपज मंडियों में व्यापारियों द्वारा बोली हेतु समर्थन मूल्य के अनुरूप आधार मूल्य तय किया जाए तथा समर्थन मूल्य में खरीदी हेतु सरकार द्वारा एजेंसी नियुक्त किया जाये जिससे किसानों को उनके उपज का लाभकारी मूल्य प्राप्त हो सके।
विद्रोही ने आगे कहा कि लॉक डाउन के चलते मनरेगा मजदूर काम से वंचित हो गए हैं जिसके कारण उनके सामने रोजगार का संकट है। कृषि क्षेत्र में भी मजदूरी बढ़ने के कारण किसानों का लागत मूल्य बढ़ रहा है ऐसे परिस्थिति में मनरेगा मजदूरों को कृषि कार्य के साथ जोड़ा जाए व मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान किया जाए जिससे किसानों को समय पर पर्याप्त मजदूर मिलने से समय पर कृषि कार्य सम्पन्न होगी और साथ ही कृषि लागत कम होगी जिससे किसान आर्थिक कर्ज एवं बोझ से बचेंगे। लॉक डाउन अवधि का समस्त जॉब कार्डधारी मनरेगा मजदूरों को मजदूरी भुगतान किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री को ईमेल से भेजे पत्र में यह भी कहा गया है कि जंगली सूअर अब केवल जंगलों तक सीमित नहीं है बल्कि राजस्व क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा उनके द्वारा किए जा रहे हमलों से जनहानि हो रही है। जंगली सुअरों के आतंक से किसान अपने खेतों में काम नहीं कर पा रहे हैं इसलिए जंगली सूअर को वन्य प्राणी की श्रेणी से पृथक किया जाये।
