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क्या आप जानतें हैं क्यों खाया जाता है मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा


नई दिल्ली,: मकर संक्रांति का त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है आज यह त्योहार पूरे भारत में मनाया जा रहा है | इस दिन पूरे भारत मे लोग तिल का लड्डू और खास खिचड़ी खाते हैं । वहीं, देश के कई राज्यों में इस त्योहार पर पतंग भी उड़ाई जाती है, हालांकि, इस बार कोरोना महामारी के कारण हर साल की तरह इस साल त्योहार की र्रोनक देखने को नहीं मिलेगी। मकर संक्रांति को शास्त्रों में स्नान, दान और ध्यान के त्योहार के रूप में दर्शाया गया है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और गुड़ तिल से बनी चीज़ें जैसे तिल के लड्डू, गजक, रेवड़ी को प्रसाद के रूप में खाया ऑर बांटा जाता हैं |ये तो आप जानते होंगे कि मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू, दही चूड़ा के साथ-साथ खिचड़ी भी खाई जाती है|
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा के पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमज़ोर हो रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्ज़ी को एक पकाने की सलाह दी।
खिचड़ी न सिर्फ पौष्टिक होती है, बल्कि इसे बनाने में ज़्यादा समय भी नहीं लगता। इसे खाने से शरीर को तुरंत ऊर्जा मिलती है। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मकर संक्रांति पूरे भारत का एक बड़ा त्योहार है जिसे पूरे भारत में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है जैसे पंजाब मे लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल छतीसगढ़, राजस्थान , गुजरात जैसे राज्यों मे इसे मकर संक्रांति के रूप मे मनाया जाता है|
