जंगलों के संरक्षण के लिए लगाए गए तार फेसिंग की हो रही चोरी, वन अमला जंगलों की सुरक्षा पर नहीं दे रहा ध्यान

जंगलों के संरक्षण के लिए लगाए गए तार फेसिंग की हो रही चोरी, वन अमला जंगलों की सुरक्षा पर नहीं दे रहा ध्यान

जंगलों की घेराबंदी टूटने से जंगल एवं वन्य जीवों पर मंडरा रहा खतरा
लाखों रूपए खर्च कर लगाए गए तार फेसिंग फिसड्डी साबित हुए.
दंतेवाड़ा से राजू शर्मा की रिपोर्ट 
दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा जिले में करीब 18 एकड़ क्षेत्र में बने वन मंदिर पर करोड़ों रूपए खर्च कर वन एवं पर्यावरण मंत्री के हाथों अपनी पीठ थपथपाने वाला वन विभाग जंगलों के संरक्षण एवं वन्य जीवों की सुरक्षा कर पाने में पुरी तरह नाकाम रहा है। आलम यह  कि जंगल क्षेत्र को सुरक्षित रखने जहां भी सीमेंट पोल गाड़कर तार फेसिंग किया गया है अधिकतर आज की तारीख में पोल या तो गिरे पड़े हैं या फिर फेसिंग किए गए तार चोरी हो चुके हैं। मगर इस बात से वन अधिकारियों को कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि इसमें लगा रूपया उनकी जेब का नहीं बल्कि आम जनता के टैक्स के रूपयों का है जो विभाग को बजट के रूप में मिलता है। जंगलों का संरक्षण एवं वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए।  

गौरतलब है कि वन विभाग दंतेवाड़ा इन दिनों बिलकुल सुस्त एवं अकर्मण्य हो चला है। जब से विभाग में ई-कुबेर सिस्टम लागू हुआ है विभागीय अफसर भी मन मसोटकर अजगर की तरह कुर्सी पर जमे पड़े रहते हैं। फील्ड का दौरा निरीक्षण तो गौण हो चुका है। जंगलों की सुरक्षा भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। बीट गार्ड, फारेस्ट गार्ड, डिप्टी रेंजर, रेंजर आदि विभागीय अधिकारी कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं। इतना बड़ा विभागीय अमला होने के बाद भी जंगलों के संरक्षण के लिए लगे फेसिंग तार की चोरी हो जाना यह प्रमाणित करता है कि जिमेदार वनकर्मी अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे। दंतेवाड़ा वनक्षेत्र अंतर्गत बालुद के नयापारा क्षेत्र में रिजर्व फारेस्ट एरिया में जंगलों के संरक्षण के लिए लगाए गए पोल से कंटीले तार गायब हैं केवल सीमेंट के पोल ही दिखाई पड़ रहे हैं कई पोल भी उखड़कर गिरे पडे हैं इन्हें देखने की फूसर्त विभागीय कर्मियों के पास नहीं है। इसी तरह दंतेवाड़ा शहर में पुराने साप्ताहिक बाजार के पीछे स्थित सागौन के जंगलों को भी सुरक्षित रखने के लिए तार फेसिंग किया गया था आज की तारीख में यहां न तो पोल दिखाई पड़ते हैं न ही फेसिंग किया गया तार ही कहीं नजर आता है। यह तो एक दो क्षेत्रों की बानगी मात्र है अमूमन हर वह क्षेत्र जहां घेराबंदी की गई है करीब करीब सभी जगहों की स्थिति एक सी है। तार चोरी हो गई तो हो गई इससे वनकर्मियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। घेराबंदी टूट जाने से जंगली जानवर कई बार अपनी प्यास बुझाने बसाहट वाले इलाकों में आ पहुंचते हैं और इंसानों के हाथों या तो पकडे जाते हैं या गांव वाले घेरकर उनका शिकार कर लेते हैं। यह बहुत गंभीर समस्या है। भले ही विभाग को यह कोई बड़ी समस्या न लगती हो पर वास्तव में जब तक जंगल इलाकों की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगी तब तक ना तो हमारे जंगल ही सुरक्षित रहेंगे और ना ही जंगलों में रहने वाले वन्य जीव ही सुरक्षित रह पाएंगे। इस ओर वन विभाग को गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।