दुनिया की पहली न्यूक्लियर डायमंड बैटरी हो चुकी है तैयार, किसी भी डिवाइस को हजारों साल करेगी चार्ज
नई दिल्ली। दुनिया की पहली न्यूक्लियर-डायमंड बैटरी बनकर तैयार हो चुकी है। ये बैटरी किसी भी तरह के छोटे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को हजारों साल तक ऊर्जा प्रदान कर सकती है। इस बैटरी में हीरे के अंदर रेडियोएक्टिव पदार्थ डाला गया है। इस बैटरी में कार्बन-14 नाम का रेडियोएक्टिव पदार्थ है, जिसकी हाफ लाइफ 5730 साल है। यानी डिवाइस अगर इतने साल चल सकता हो तो उसे ऊर्जा मिलती रहेगी।
इंग्लैंड की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली न्यूक्लियर-डायमंड बैटरी बनाई है। रेडियोएक्टिव पदार्थ और हीरा मिलकर बिजली पैदा करते हैं। यह जानकारी वैज्ञानिकों ने हाल ही में दी है। इस बैटरी को चलाने के लिए किसी भी तरह के मोशन की जरूरत नहीं है। यानी किसी कॉयल के अंदर मैग्नेट को घुमाने की जरूरत नहीं है।
यह किसी भी पारंपरिक बैटरी या बिजली पैदा करने वाले यंत्र से कई गुना बेहतर है। इस बैटरी के अंदर रेडिएशन की वजह से इलेट्रॉन्स तेजी से घूमते हैं। जिसकी वजह से बिजली पैदा होती है। ये ठीक वैसा ही है जैसे सोलर पावर के लिए फोटोवोल्टिक सेल्स का इस्तेमाल होता है। जिसमें फोटोन्स को बिजली में बदला जाता है।
इन वैज्ञानिकों ने इससे पहले nickel-63 के इस्तेमाल से साल 2017 में प्रोटोटाइप बैटरी बनाई थी। लेकिन नई बैटरी को कार्बन-14 रेडियोएक्टिव आइसोटोप और हीरे के साथ बनाया गया है। इस रेडियोएक्टिव पदार्थ को हीरे के बीच में लगाया जाता है। जिससे बिजली पैदा होने लगती है।
कार्बन-14 का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है ताकि रेडिएशन कम और छोटी दूरी तक हो। ये आसानी से किसी भी सॉलिड मटेरियल में एब्जॉर्ब हो जाता है। इससे रेडिएशन का खतरा कम हो जाता है। नुकसान कम होता है। कार्बन-14 को सीधे खुले हाथों से नहीं छू सकते। न ही इसे निगल सकते हैं। ऐसे में ये जानलेवा साबित हो सकता है।
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट नील पॉक्स ने बताया कि दुनिया का सबसे कठोर पदार्थ हीरा है। हीरे से ज्यादा सुरक्षित इस बैटरी के लिए कुछ नहीं था। कार्बन-14 प्राकृतिक तरीके से पैदा होता है। इसके इस्तेमाल न्यूक्लियर प्लांट्स को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है।
कार्बन-14 की हाफ लाइफ 5730 साल है। यानी इतने वर्षों में यह सिर्फ अपनी आधी ताकत खोएगा। अगर भविष्य में इस पदार्थ की ताकत से स्पेसक्राफ्ट बनाया जाए तो वह हमारे सौर मंडल के सबसे नजदीकी पड़ोसी अल्फा सेंटौरी तक पहुंच जाएगा। जो हमसे 4.4 प्रकाश वर्ष की दूरी पर मौजूद है।