उत्कट पुण्य पापों का फल शीघ्र प्राप्त होता है : स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज

रायपुर। श्री शंकराचार्य बोरिया कला रायपुर में चल रहे चातुर्मास प्रवचन माला के क्रम को गति देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. इंदुभवानंद महाराज ने शिव पुराण की कथा के अंतर्गत कहा कि अत्यंत उत्कट पुण्य एवं पाप पूर्ण रूप से शीघ्रफल देने वाले होते हैं। एक श्लोक की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया की 3 वर्ष 3 माह, तीन पक्ष, तीन दिन में उत्कट पुण्यों एवं पापों का फल प्राणी को शीघ्र प्राप्त हो जाता हैअतः पाप से व्यक्ति को बचाना चाहिए।
सती जी जब अपने शरीर का परित्याग कर रही थी। तब उन्होंने सभासदों को लक्ष्य करते हुए कहा कि यहां शिव का अपमान हो रहा है। और आप लोग मौन होकर सहमति प्रदान कर रहे हो इस शिव अपमान को देख सुन रहे हैं। जहां कहीं भी भगवान शिव भगवान विष्णु व गुरु की निंदा हो तो उसे स्थान से व्यक्ति को भाग जाना चाहिए, अन्यथा उसको गुरु हत्या का पाप लगता है और यदि कदाचित कोई मोह बस अपनी गुरु की निंदा करता है तो वह मेंढक की योनि में हजारों वर्ष तक दुख भोगता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गुरु में विष्णु में एवं शिव में कोई भेद नहीं होता है, जो इनमें भेद करता है वह हजारों वर्ष तक नरक की यातनाओं को भोक्ता है, अतः इन तीनों में से किसी एक की भी निंदा सुनना महान पाप कहलाता है। ऐसा कहकर के सती जी ने अपने मन में भगवान का स्मरण किया और प्रार्थना की कि जब-जब मुझे स्त्री का जन्म प्राप्त हो तो मैं शिव की ही पत्नी बन कर भवानी कहलाऊ।
ऐसा करके उन्होंने अपने शरीर को योग की अग्नि में समाहित कर लिया वैसे सती जी चार प्रकार की अग्निओं से जल रही थी एक बिरह की अग्नि जो पति श्री शिव जी ने उनका परित्याग कर दिया था। दूसरा क्रोध की अग्नि, यज्ञ में शिव जी का अपमान देखकर की उत्पन्न क्रोध से जल रही थी, तीसरी अपने अपमान की अग्नि और चौथी यज्ञ की अग्नि। सती के शरीर को भस्म होते ही रुद्र गणों ने यज्ञ का ही विध्वंस कर दिया। जिस यज्ञ में श्रद्धा नहीं होती है, ब्राह्मणों को दक्षिणा नहीं दी जाती है तथा लोगों को भोजन नहीं कराया जाता है ऐसे यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं। कथा के पूर्व यजमान पुहुपराम साहू एवं मनोरमा साहू ने पोथी पुराण का पूजन किया तथा शंकराचार्य आश्रम के वैदिक विद्वानों ने पूजन कराया।