चेर्नोबिल का सुपरकीड़ा, जिस पर असर ही नहीं कर पाया खतरनाक रेडिएशन
नई दिल्ली। चेर्नोबिल... दुनिया का सबसे खतरनाक रेडियोएक्टिव इलाका। जहां इंसान रह नहीं सकते थे। हजारों जानवर रेडिएशन से मर गए। उन्हें कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां हो गई। वहां दो चीजें बचीं। एक वो जो रेडिएशन के बाद खुद को बदल ले गए। जैसे कुछ कुत्ते। दूसरे वो जिनके ऊपर रेडिएशन का असर ही नहीं हुआ।
यहां खास हैं वो जीव, जिनके ऊपर इतने खतरनाक हादसे को कोई बुरा असर हुआ ही नहीं। अब इस खोज से वैज्ञानिक हैरान हैं। चेर्नोबिल एक्सक्लूसन जोन (CEZ) में कुछ माइक्रोस्कोपिक कीड़े मिले हैं। यानी नीमेटोड्स (Nematodes)। इनके शरीर पर रेडिएशन का कोई असर ही नहीं है। अगर यह प्राकृतिक तकनीक इंसान अपना ले तो उसे भी रेडिएशन का असर नहीं होगा। अब वैज्ञानिक इसी बात की स्टडी कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने जिन नीमेटोड्स को चेर्नोबिल के आसपास से जमा किया था, उनके शरीर पर रेडिएशन का कोई असर नहीं दिखा. तिनका मात्र भी नहीं। इसे देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए।
जबकि ये पूरी तरह से असंभव जैसा मामला था। स्टडी में वैज्ञानिकों ने बताया कि CEZ अन्य जीवों के लिए सुरक्षित नहीं है, लेकिन ये कीड़े पूरी तरह से सही हैं।
इन नीमेटोड्स ने चेर्नोबिल के पर्यावरण को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की बायोलॉजिस्ट सोफिया तिनतोरी ने बताया कि हम इन नीमेटोड्स की स्टडी करके इनके डीएनए रिपेयर मैकेनिज्म को समझ सकते हैं। ताकि भविष्य में रेडिएशन के शिकार और कैंसर मरीजों के लिए इनकी मदद से दवा बनाई जा सके।
अप्रैल 1986 में हुए न्यूक्लियर विस्फोट के बाद चेर्नोबिल के पास का कस्बा Pripyat खाली है। यहां जाने के लिए सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है। यहां विस्फोट के बाद जो रेडिएशन फैला उसकी चपेट में पेड़-पौधे, जानवर सब आए। जिससे उनमें म्यूटेशन, कैंसर और मौत जैसी घटनाएं देखने को मिलीं।
इस इलाके को इंसानों के लिए रहने लायक होने में अभी हजारों साल लगेंगे। लेकिन जहां तक बात रही जानवरों की तो वो किसी ऐसे इलाके से दूर जाने के प्रतिबंध को नहीं समझते। वो तभी उस इलाके से जाएंगे, जब उनका मन करेगा। विस्फोट के बाद CEZ का 2600 वर्ग किलोमीटर का इलाका जानवरों की सेंचुरी बन चुका है। इस इलाके में रहने वाले जीवों पर रेडिएशन का अलग- अलग असर देखने को मिला है। हर प्रजाति पर अलग।
सोफिया ने कहा कि चेर्नोबिल हादसे की तुलना नहीं हो सकती। इसका स्थानीय आबादी पर खासा असर पड़ा है। आबादी सिर्फ इंसानों की नहीं बल्कि जानवरों की भी। यहां रेडियोएक्टिव प्रकृति ने अपने साथ रहने लायक जीवों को छांट लिया है. सेलेक्ट कर लिया है। या फिर उन्हें अपने माहौल में रहने लायक बदलाव करने पर मजबूर किया है। जैसे कुछ कुत्तों के जीन्स म्यूटेट हो गए। उनपर रेडिएशन का असर हुआ था।
जहां तक बात रही इन नीमेटोड्स की तो इनपर रेडिएशन का असर ही नहीं हुआ। ये राउंडवर्म्स हैं, जैसे बरसात में दिखने वाले केंचुएं। ये अलग- अलग तरह के हैबिटैट्स में रहते हैं. यहां तक कि जीवों के शरीर में भी। ये इतने कठोर होते हैं कि हजारों सालों तक पर्माफ्रॉस्ट में यानी बर्फ में दबे रहने के बाद वापस जिंदा हो जाते हैं। इनके जीनोम साधारण होते हैं। ये बेहद छोटा जीवन जीते हैं। यानी कम समय में इनकी कई पीढ़ियां बदल जाती हैं।